धर्म

माता कालरात्रि की पूजा से होती है सभी बाधाएं दूर

maa kaalkatri माता कालरात्रि की पूजा से होती है सभी बाधाएं दूर

नई दिल्ली। नवरात्रि के सातवें दिन मां दुर्गा के स्वरुप माता कालरात्रि की पूजा की जाती है। मां कालरात्रि का स्वरुप अत्यंत काला होता है इसी वजह से मां के इस स्वरुप को कालरात्रि का नाम दिया गया है।शास्त्रों के अनुसार मां दुर्गा ने असुरों के राजा रक्तबीज का वध करने के लिए अपने तेज से इन्हें उत्पन्न किया था। इसके साथ ही ऐसी मान्यता है कि माता का ये स्वरुप काल को भी भयभीत कर सकता है।

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माता के अगर इस स्वरुप की बात करें तो उनका शरीर अंधकार के समान होता है। बाल बिखरे हुए , गले में विद्युत की माला और गर्दभ की सवारी करती है। इसके साथ ही हाथ में कटा हुआ सिर धारण करती है। माता के इस रुप के चार हाथ है। एक हाथ में कटार और दूसरे में लोहे का कांटा धारण किया हुआ है। इसके अलावा इनके दो हाथ वरमुद्रा और अभय मुद्रा में है। इसके साथ ही माता के इस रुप के तीन नेत्र है और इनके श्वास से अग्रि निकलती रहती है।

कालरात्रि की उत्पत्ति की कथा:-

ऐसा माना जाता है कि असुर शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज के अत्याचारों से तीनों लोकों में हाहाकार मचा हुआ था। जिसके चलते सभी देवता माता पार्वती और शिव जी के पास गए और माता पार्वती से इस समस्या का निदान करने को कहा। शिव जी की बात मानकर माता पार्वती ने देवी दुर्गा का अवतार लेकर असुर शुंभ-निशुंभ का वध किया लेकिन जैसे ही उन्होंने रक्तबीज को मारा उसके रक्त से अनेको नए रक्तबीजों ने जन्म ले लिया। इसे देख देवी दुर्गा ने अपने तेज से माता कालरात्रि को उत्पन्न किया। रक्तबीज पर प्रहार करते ही माता कालरात्रि ने शरीर से निकलने वाले लहु को अपने मुख में भर लिया और सबका गला काटते हुए रक्तबीज का वध कर दिया।

मान्यता :- 

लोगों की ऐसी मान्यता है कि माता के कालरात्रि रुप की आराधना करने से मनुष्य को सारी सिद्धियां प्राप्त हो जाती है। इसके साथ ही इनकी पूजा करने से न केवल दुष्टों का नाश होता है बल्कि घर की सभी बाधाएं भी दूर हो जाती है। इसके अलावा काला जादू करने वाले भी माता के इस रुप की पूजा करते हैं।

मंत्र का करें जाप:-

माता कालरात्रि के इस मंत्र का जाप करने से न केवल घर की बाधांए दूर होगी बल्कि घर में शांति की स्थापना भी होती है।

एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता, लम्बोष्टी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा, वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥

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