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19 फीसदी आबादी कर सकती है बड़ा उलट-फेर

up 4 19 फीसदी आबादी कर सकती है बड़ा उलट-फेर

नई दिल्ली। सूबे में चुनावी माहौल और सियासी रंगत अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंच रही है। चुनावी महीनों में समीकरणों की कसरत हर दल और पार्टी में जारी है। अभी अपने वोटों के साथ सियासत के समीकरणों को तौल रहे हैं। सूबे में सत्ता को पलटने की बड़ी ताकत के तौरे पर मुस्लिमों के वोट के साथ इनके मिजाज पर हर पार्टी की नजर है। क्योंकि किसी को इनके बिखराव से फायदा पहुंचना है तो किसी को गठजोड़ से लेकिन मुस्लिम वोटर के मन और दिमाग में क्या चल रहा है। ये जनादेश ही बतायेगा।

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सपा और कांग्रेस के गठजोड़ का फायदा

प्रदेश की आबादी का 19 फीसदी केवल मुस्लिम वर्ग के वोटरों का है। समाजवादी पार्टी को देखा जाये तो 1990 के दशक से सपा और मुलायम मुस्लिम वोटरों के बड़े चेहरे के तौर पर उत्तर प्रदेश की राजनीति में उभर कर आये थे। इसी वजह से मुस्लिम समुदाय का बड़ी संख्या में सीधा झुकाव सपा की ओर रहता है। इसके बाद वो कांग्रेस को ज्यादा मुफीद समझते हैं। लेकिन सपा-कांग्रेस गठजोड़ से इनके बंटवारे का खतरा थोड़ा सा सपा का कम लग रहा है। बीते 2012 के चुनाव में सपा को सीधे तौर पर मुस्लिम वर्ग का बड़ा साथ मिला था। इसके पहले मुस्लिम वर्ग की कुछ जातियों के बड़े समर्थन से बसपा को सत्ता मिल गई थी। लेकिन 2009 के लोकसभा चुनाव के दौरान एंटी बीजेपी पोल की रणनीति ने बसपा और सपा को एक बार चौका दिया था । क्योंकि कांग्रेस एक बड़े मुस्लिम वोटरों की समर्थक पार्टी बन गई थी। अब कांग्रेस के साथ सपा इस बार पर थोड़ा निश्चिंत है कि कांग्रेस के बंटवारे से उसे अब कोई बड़ी दिक्कत नहीं होने वाली है।

बसपा को लेकर कितना संजीदा है मुस्लिम वर्ग

बसपा के पाले में छोटे जातिवर्ग या समूह के मुस्लिम वोटरों का रूझान रहता है। ये तकबा भी पहले सपा के पाले में गिरता रहा है। लेकिन सपा में बड़े रसूख के मुस्लिम नेताओं के रवैए से नाराज इस वर्ग ने बसपा के साथ अपना नाता जोड़ रखा है। हांलाकि बसपा लगातार सपा और कांग्रेस के गठजोड़ से एक होने वाले मुस्लिम वोटरों पर सेंधमारी कर रही है। इसके लिए नसीमुद्दीन सिद्दीकी की पूरी टीम को लगा रखा है। क्योंकि बसपा को पता है कि बिना इस वर्ग के गठजोड़ के सत्ता की सीढ़ी चढना मुमकिन नहीं होगा। वैसे मुस्लिम वर्ग का एक बड़ा तकबा बसपा के पाले में होता रहा है। इसके लिए बसपा की तरफ से सबसे ज्यादा मुस्लिम प्रत्याशी मैदान में उतारे गये हैं।

औवेसी और अन्य मुस्लिम पार्टियों का वजूद

औवेसी और अन्य मुस्लिम पार्टियों का अभी उत्तर प्रदेश की राजनीतिक विसात पर कोई बड़ा वजूद नहीं है। ये पार्टियां केवल मुस्लिम वोटरों के विभाजन में एक बड़ा किरदार निभा सकती है। हांलाकि इसका सूबे की राजनीतिक गणित पर कोई असर नहीं पड़ने वाला है। हांलाकि टिकटों के बंटवारे में कई अन्य जाति और धर्म के चेहरों को इन पार्टियों ने टिकट दिया है। सत्ता के रण में 19 फीसदी मुस्लिम वोटरों की हिस्सेदारी बंटने पर किसी बड़े दल को तो बड़ा असर पड़ सकता है। लेकिन इससे इन पार्टियों की हार या जीत का कोई रास्ता नजर नहीं आता है। यानी ये दल केवल वोटरों का बंटवारा ही कर सकते हैं।

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