नई दिल्ली। बीते साल 8 नवम्बर को नोटबंदी का फैसला देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लिया है। उन्होने रात 8 बजे देशवासियों के नाम एक सम्बोधन जारी करते हुए । भारतीय गणराज्य में प्रचलित 500 और 1000 के नोटों का प्रचलन बंद करने और इसे बैकों में बदलने के साथ इनको अपने खातों में जमा करने का अनुरोध किया था। पीएम मोदी की घोषणा ऐसे वक्त में हुई थी। जब देश में कुछ दिनों पहले ही दीपावली की छुट्टियां खत्म हुई थीं। ठीक दीपावली के 1 हफ्ते बाद ये फरमान आया था। देश में शादी विवाह का भी मौसम था।
लोगों को इस दौरान बैकों में चक्कर लगाने पड़े। एटीएमों के आगे कई किलोमीटर लम्बी कतारें लग गई। बैकों में भीड़ का सैलाब उमड़ गया। जगह-जगह नोटों को फेंकने की खबरें आती रही। सरकार के फैसले के बाद विपक्ष सकते में आ गया। क्योंकि जनवरी से मार्च में देश में 5 राज्यों में विधान सभा चुनाव थे। ऐसे में कई राजनीतिक दलों के चुनावी प्रबंधन पर असर पड़ा।
विपक्ष सरकार के फैसले के खिलाफ सड़क से संसद तक आ गया था। विपक्ष ने सरकार के इस फैसले को जन विरोधी करार दिया। सरकार ने कहा कि जनता करेगी। हिसाब 5 राज्यों के आम चुनाव में सत्ताधारी पार्टी भाजपा ने 4 राज्यों में अपनी सरकार बनाई। उत्तराखंड और उत्तरप्रदेश में भाजपा को बम्पर सीटें मिली।सरकार ने इस फैसले को लेकर जनता के बीच एक बार फिर नोटबंदी की सार्थकता बताने के लिए 8 नवम्बर की तारीख तय की है।
इस मामले में विपक्ष का बार बार कहना है कि नोटबंदी के कारण देश में बेरोजगारी बढ़ी, लोगों के रोजगार गए, सरकार ने जिस कालेधन की बात कह लोगों को नोटबंदी की सार्थकता बताई थी। वो कालाधन कहां गया। लोगों की हालत पहले से ज्यादा खराब हो गई। आर्थिक स्तर नीचे गिर गया है। देश की आर्थिक विकास दर नीचे गई है, सरकार इस मोर्च पर विफल रही है। सरकार ने अपना फायदा उठाने के लिए विदेश कंपनियों को लाभ पहुंचाने के लिए नोटबंदी लागू की।
इस मुद्दे की गम्भीरता देखते हुए भारत खबर की टीम ने नोटबंदी के ठीक 1 साल पूरा होने के एक दिन पहले कुछ लोगों से बात लोगों के विचारों को सुना आपके लिए यहा पर हम साझा कर रहे हैं। देखिए आखिर लोगों का नोटबंदी को लेकर क्या कहना है।