जयपुर। साल 2018 के अंत में राजस्थान में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, जिसके लिए राज्य की वसुंधरा सरकार ने तैयारी शुरू कर दी है। सरकार कर्ज के बोझ तले दबे राज्य के किसानों का कर्जा माफ करने की तैयारी कर रही है। बताया जा रहा है कि वसुंधरा राजे अपने आखिरी बजट भाषण में कर्ज माफी की घोषणा करेंगी। सरकार ने केरल की तर्ज पर राज्य में किसान आयोग बनाकर कर्ज चुकाने में नाकाम रहने वाले किसानों से आवदेन मांगेगी और फिर कर्जदार किसान की आर्थिक स्थिति की पड़ताल करने और मौसम और फसल का अध्यक्ष करने के बाद किसान का कर्ज माफ करेगी। सरकार ने कर्ज माफी की सीमा एक हजार से 11 लाख रुपये रखी है।
वहीं सरकार के इस फैसले को लेकर राजस्थान कांग्रेस सहीत राज्य के कई राजनीतिक दल और किसान संगठन केरल मॉडल के पक्ष में नहीं है। इन लोगों का कहना है कि केरल के मॉडल को राजस्थान के किसानों के लिए नहीं अपनाया जा सकता क्योंकि केरल मॉडल से राजस्थान के किसानों को अधिक फायदा नहीं होगा। बता दें कि प्रदेश के 50 लाख किसानों ने अलग-अलग संस्थानों से 27 हजार करोड़ रुपये के कर्ज ले रखे हैं। गौरतलब है कि राजस्थान में किसानों की कर्ज माफी को लेकर पिछले दो साल से आंदोलन चल रहा है। इसी तरह माकपा से सम्बंद्ध भारतीय किसान सभा ने पिछले महीने ही किसान आंदोलन किया था।
इस आंदोलन के बाद ही सरकार ने प्रदेश के जल संसाधन मंत्री डॉ. राम प्रताप की अगुवाई में एक उच्च स्तरीय कमेटी बनाकर कर्ज माफी करने वाले राज्यों का दौरा कर वहां के हालात का अध्यन करने के बाद एक रिपोर्ट तैयार की थी। कमेटी ने अध्यन के लिए महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और केरल का दौरा किया था और किसानों के कर्ज माफ करने के बाद इसके बाद के हालात को देखा था। सरकार ने कर्ज माफी का तो मानस बना लिया,लेकिन कर्ज माफी से 27 हजार करोड़ रूपए का आर्थिक भार पड़ने की संभावना को देखते हुए मध्यम मार्ग निकालते हुए केरल की तर्ज पर कर्ज माफी करने की योजना बनाई है।
कमेटी ने साफ किया कि सभी किसानों का कर्ज एकसाथ माफ नहीं किया जाएगा। राज्य स्तरीय आयोग बनाकर एक-एक किसान को बुलाकर कर्ज माफी का आवेदन लिया जाएगा,इसमें किसान को खुद को डिफाल्टर घोषित करना होगा। इसके बाद आयोग गुण-अवगुण के आधार पर कर्ज माफी का फैसला करेगा। कांग्रेस विधायक दल के मुख्य सचेतक गोविंद सिंह डोटासरा,माकपा के अमराराम और किसान महापंचायत के रामपाल जाट केरल की तर्ज पर कर्ज माफी के निर्णय को मानने को तैयार नहीं है। इनका कहना है कि आयोग बनाकर एक-एक किसान की सुनवाई करने में इतना वक्त लग जाएगा कि जब तक विधानसभा चुनाव आ जाएंगे और इस दौरान कुछ ही किसानों के कर्ज माफ हो सकेंगे। इन नेताओं का आरोप है कि सरकार घोषणा कर राजनीतिक लाभ लेना चाहती है।