नई दिल्ली। किसी तरह का अनचाहा शारीरिक संपर्क या फिर दुर्घटनावश हुआ शारीरिक संपर्क यौन उत्पीडन नहीं है। अक्सर सफर में तकरार में किसी महिला का हाथ पकड़ा या शरीर से छू जाना किसी तरह का यौन उत्पीडन नहीं कहा जा सकता ये बात दिल्ली हाईकोर्ट ने कही है। इसके साथ ही अदालत ने ये भी साफ किया कि अगर किसी भी तरह का ऐसा शारीरिक संपर्क हो जिसमें आपकी अनिच्छा थी लेकिन उस शारीरिक संपर्क का व्यवहार यौन उन्मुख नहीं था तो वह यौन उत्पीडन नहीं कहा जा सकता है।
न्यायमूर्ति विभू बाखरू ने अपने ऐतिहासिक फैसले में ये साफ किया कि सभी प्रकार का शारीरिक संपर्क यौन उत्पीडन की श्रेणी में नहीं आंका जा सकता है। हो सकता है सफर या कि भी वहज से किसी के साथ आपका शारीरिक संपर्क हुआ हो तो सकता है यह बहुत ही अशोभनीय रहा हो, लेकिन वह यौन उत्पीड़न नहीं कहा जा सकता है। इस फैसले में ये भी साफ किया कि अगर अनचाहा यौन व्यवहार हो जहां व्यक्ति की नीयत ही गलत हो उसे यौन उत्पीडन की श्रेणी में रखा जा सकता है।
इसके साथ ही कोर्ट ने ये भी साफ कि लिंग के आधार पर यौन उत्पीडन की बात को मानना गलत है। जब तक कि शारीरिक संपर्क के दौरान यौन प्रकृति की भावना का होना नहीं हो तो उसे यौन उत्पीडन के दायरे में लाना एकदम गलत है। कोर्ट ने ये फैसला सीआरआरआई के एक वैज्ञानिक की अपील पर सुनवाई के दौरान दिया। इस अपील में महिला ने अपने एक वरिष्ठ सहयोगी पर यौन उत्पीडन का आरोप लगाया था। जिसको शिकायत समिति और अनुशासनात्मक प्राधिकार से क्लीन चिट दी गई थी। महिला ने इसके खिलाफ अपील की थी।