नई दिल्ली। भारत के लौह पुरुष के नाम से मशहूर सरदार वल्लभ भाई पटेल की आज 67वीं पुण्यतिथी है। सरदार पटेल की बात करें तो अगर ये नहीं होते तो आज भारत की भौगोलिक स्थिति कुछ और ही होती, शायद भारत आज अखंड भारत नहीं, बल्कि टुकड़ो में बसा हुआ होता। सरदार पटेल के देश के प्रति योगदानों को कोई नहीं भुला सकता। सरदार पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को हुआ था। उन्हें सरदार की उपाधी सत्याग्रह में भाग लेने वाली महिलाओं ने दी थी। विभाजन के बाद अंग्रेजों ने देश की 500 रियासतों को भारत या पाकिस्तान में से किसी एक में शामिल होने या फिर एक अलग राष्ट्र बनने की छुट दी थी, सरदार पटेल ने इन्ही 500 रियासतों का अपने दिमाग और बाहुबल के दम पर भारत में विलय कराया था।
उन्होंने ही गुजराती किसानों को कैरा डिस्ट्रक्ट को-ऑपरेटिव मिल्क प्रोड्यूसर्स यूनियन बनाने के लिए प्रेरित किया था, जो की आगे चलकर अमूल दूध के नाम से व्यख्यात हुई। इसी के साथ देश के पहले गृहमंत्री और उप प्रधानमंत्री पटेल को भारत में आईएएस, आईपीएस और केंद्रीय सेवाओं को शुरू करने का जनक माना जाता है। सरदार पटेल ने एक वकील के रूप में अपने करियर की शुरुआत की थी, लेकिन साल 1917 में गांधी जी के विचारों से प्रभावित होकर उन्होंने आजादी के आंदोलन में भाग ले लिया था। 1917 से 1924 तक सरदार पटेल ने अहमदनगर के पहले भारतीय निगम आयुक्त के रूप में सेवा प्रदान की और 1924 से 1928 तक वे इसके निर्वाचित नगरपालिका अध्यक्ष भी रहे।
सरदार पटेल का संविधान निर्माण में भी बहुत बड़ा योगदान है, उन्होंने ही बाबा साहेब को संविधान बनाने के लिए चुना था। हालांकि, वो शुरू में आरक्षण के खिलाफ थे, लेकिन उन्होंने बाद में आरक्षण के मुद्दे पर सहमति जता दी थी। उन्होंने ही भारत के नागरिकों को मिलने वाले अधिकारों को दो भागों में बांटने का सुझाव दिया था, जिनमें से एक है मूलाधिकार और दूसरा नीति-निर्देक तत्व। आपको बता दें कि अगर गांधी जी पं. नेहरू का नाम प्रधानमंत्री के तौर पर आगे नहीं करते तो देश के पहले प्रधानमंत्री बनने का गौरव सरदरा वल्लभ भाई पटेल को ही प्राप्त होता।
दरअसल साल 1946 के कांग्रेस अधिवेशन में ये तय किया गया था कि कांग्रेस का अध्यक्ष ही भारत का अगला प्रधानमंत्री होगा। उस वक्त कांग्रेस की कमान मौलाना आजाद के हाथों में थी, लेकिन गांधी ने उनका नाम हटाकर प्रधानमंत्री के लिए नेहरू जी के नाम का समर्थन किया। हालांकि गांधी जी के समर्थन के बावजूद देश नेहरू जी को नहीं बल्कि सरदार पटेल को देश का भावी प्रधानमंत्री बनते हुए देखना चाहता था,जिसके लिए उन्हें देश के 15 में से 12 राज्यों के लोगों ने समर्थन दिया था। पटेल जी को समर्थन तो मिल गया, लेकिन उस दौरान गांधी जी को लगा की अगर पटेल प्रधानमंत्री बन गए तो कांग्रेस टूट सकती है, जिसका फायदा सीधे-सीधे अंग्रेजो को मिल सकता है इसलिए गांधी जी के आग्रह पर सरदार पटेल ने अपना नाम वापस ले लिया और नेहरू जी को देश का पहला प्रधानमंत्री बनाए जाने का निर्णय लिया गया।