धर्म

जानिए वट सावित्री के व्रत का महत्व

vat Savitri 01 जानिए वट सावित्री के व्रत का महत्व

कथा:- राजा अश्वपति की पुत्री सावित्री ने द्युत्मसेन के पुत्र सत्यवान की कीर्ति सुन कर उन्हें पति के रूप में चुना। यह बात जब देवर्षि नारद को ज्ञात हुई तो वह राजा अश्वपति से बोले, ‘राजन् सत्यवान की एक वर्ष के बाद मृत्यु हो जाएगी।’ नारद मुनि की बात से अश्वपति विचलित हो उठे। उन्होंने अपनी पुत्री सावित्री को समझाया, ‘ऐसे अल्पायु व्यक्ति के साथ विवाह करना उचित नहीं है, इसलिए कोई दूसरा वर चुन लो।’ लेकिन सावित्री ने इनकार कर दिया। सावित्री का विवाह सत्यवान से हो गया। सावित्री ने नारदजी से सत्यवान की मृत्यु का समय मालूम कर लिया।

vat Savitri

जब पति की मृत्यु का दिन नजदीक आ गया है, तब सावित्री ने तीन दिन पूर्व से ही उपवास शुरू कर दिया। मृत्यु वाले दिन सत्यवान अपने समय पर लकड़ी काटने के लिए जब चला तो सावित्री भी साथ चली। जंगल मे पहंुच कर लकड़ी काटते समय सत्यवान की मृत्यु हो गई। सावित्री ने उसी समय दक्षिण से भैंसे पर यमराज को आते देखा। धर्मराज जब सत्यवान के प्राण लेकर चले तो सावित्री भी उनके पीछे चल दी।

पहले तो यमराज ने उसे दैवी विधान सुनाया, पर उसकी निष्ठा देख वर मांगने को कहा। सावित्री बोली, ‘मेरे सास-ससुर नेत्रहीन हैं, आप उन्हें ज्योति प्रदान करें।’ यमराज ने कहा ऐसा ही होगा, अब लौट जाओ। लेकिन सावित्री नहीं लौटी। यह देख यमराज ने फिर वर मांगने को कहा। सावित्री बोली, ‘मेरे ससुर का राज्य छिन गया है, वह उन्हें फिर मिल जाए।’ यमराज ने यह वरदान भी दे दिया पर सावित्री ने पीछा न छोड़ा। अंत में यमराज ने उसे पुत्र होने का वरदान दिया। इस पर सावित्री ने कहा कि बिना पति के पुत्र कैसे संभव है! अंतत: यमराज को सत्यवान को जीवनदान देना पड़ा।

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