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आज है हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद की पुण्यतिथि, पृथ्वीराज से लेकर हिटलर तक थे उनके खेल के कायल

dhyan chand आज है हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद की पुण्यतिथि, पृथ्वीराज से लेकर हिटलर तक थे उनके खेल के कायल

नई दिल्ली। पल भर में ही अपनी हॉकी से गोल दागने वाले मेजर ध्यानचंद की आज पुण्यतिथि,है। अपनी फिरकी की मदद से देश को तीन ओलंपिक गोल्ड मेडल जिताने वाले मेजर ध्यानचंद भारत में हॉकी के जनक से कम नहीं है। उनसे जुड़े कुछ तथ्यों को उजागर करते हुए  केंद्रीय कॉलेज में प्रोफेसर डॉ सुनील तिवारी कहते हैं कि बर्लिन ओलंपिक में उनके शानदार प्रदर्शन को देखकर उस समय जर्मनी के तानाशाह एडोल्फ हिटलर ने ध्यानचंद को जर्मनी की नागरिकता और सेना में एक अहम पद देने की पेशकश की थी, लेकिन उन्होंने हिटलर के इस प्रस्ताव को ठुकराते हुए कहा था कि वो गरिबी में रहना पंसद करेंगे, लेकिन अपने देश के साथ कभी गद्दारी नहीं करेंगे।

मेजर ध्यानचंद ने कई यादगार मैच खेले हैं। उनके द्वारा साल 1933 में कलकत्ता कस्टम्स और झांसी हीरोज के बीच में खेले गए बिगटन कल्ब का फाइनल मैच उनके जीवन का सबसे  पसंदीदा मुकाबला था। मेजर के बारे में बताते हुए उनके बेटे अशोक ध्यानचंद कहते हैं कि पिताजी ने 14 साल की उम्र में ही हॉकी खेलना शुरू कर दिया था और वो अक्सर चांद की रोशनी में ही हॉकी की प्रौक्टिस किया करते थे इसलिए उनके नाम के पीछे चांद जुड गया और ध्यान सिंह से ध्यानचंद सिंह हो गए। आपको बता दें कि बॉलीवुड एक्टर पृथ्वीरान कपूर उनके खेल के कायल थे, एक बार तो मुंबई में हो रहे मैच में वो उस दौर के सिंगर कुंदन लाल को भी अपने साथ ले गए थे।

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उस मैच में भारत की टीम की तरफ से काफी देर तक कोई गोल नहीं किया गया था, इस पर सहगल ने चुटकी लेते हुए पृथ्वीराज से कहा था कि आप तो इनकी बहुत तारीफ कर रहे थे,लेकिन ये अभी तक हमारी टीम के लिए एक भी गोल नहीं दाग पाए। इस बात को सुनकर ध्यानचंद ने शर्त रखते हुए कहा था कि आज हम जितने गोल दांगेगे आप हमें उतने गाने सुनाएंगे। सहगल ने इसके लिए हामी भर दी, फिर क्या था मेजर ने एक के बाद एक 12 गोल दागे, ये देखकर सहगल बचने के लिए स्टेडियम छोड़कर ही भाग गए। हालांकि दूसरे दिन सहगल ने मेजर को स्टूडियों में बुलाने के लिए अपनी कार भेजी। लेकिन जब ध्यानचंद्र वहां पहुंचे, तब तक सहगल का गाना गाने का मन नहीं हुआ, जिसपर ध्यानचंद बहुत निराश हुए।
वहीं अगले दिन सहगल खुद उस जगह पहुंचे गए, जहां ध्यानचंद और उनकी टीम रुकी हुई थी। सहगल ने खिलाड़‍यों को 14 गाने सुनाए और एक-एक घड़ी गिफ्ट में भी दी।

मेजर ध्यानचंद के बारे में आगे बताते हुए उनके बेटे अशोक कहते हैं कि जर्मनी के बर्लिन के हॉकी स्टेडियम में जर्मनी और भारत के बीच उस ऐतिहासिक मैच को देखने के लिए 40 हजार लोग पहुंचे थे। बड़ौदा के महाराजा और भोपाल की बेगम भी मैच देखने पहुंचे थे। जर्मन खिलाड़ियों ने भारत की तरह छोटे-छोटे पासों से खेलने की तकनीक अपना रखी थी। हाफ टाइम तक भारत सिर्फ एक गोल से आगे था। इसके बाद मेजर ध्यान चंद ने अपने स्पाइक वाले जूते और मोजे उतार दिए और नंगे पांव खेल के मैदान में डट गए। जर्मन खिलाड़ियों की समझ में ही नहीं आ रहा था कि ये हो क्या रहा है। भारत ने जर्मनी को 8-1 से हराया और इसमें तीन गोल ध्यानचंद ने किए थे।

आपको बता दें कि  मेजर ध्यानचंद के गेम को देखते हुए ऐसी अफवाह उड़ी कि उनकी हॉकी में कहीं चुंबक तो नहीं लगा है, जिससे बॉल हॉकी में चिपक जाती हो। ये जानने के लिए हॉलैंड में लोगों ने उनकी हॉकी स्टिक तुड़वा दी थी, जिसमें अफवाह झूठी निकली थी। इस खिलाड़ी ने किस हद तक अपना लोहा मनवाया होगा, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि ऑस्ट्र‍िया की राजधानी वियना के स्पोर्ट्स क्लब में उनकी एक मूर्ति लगाई गई है, जिसमें उनके चार हाथ और उनमें चार स्टिकें दिखाई गई हैं।

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