नई दिल्ली। नवरात्र का आज तीसरा दिन है इस दिन मां दुर्गा के स्वरुप चंद्रघंटा देवी की आराधना की जाती है। मां के माथे के ऊपर घंटे के आकर का आधा चंद्रमा है , जिस वजह से ही इनको चंद्रघंटा कहा जाता है। मां का यह स्वरूप परम शांतिदायक और बहुत ही कल्याणकारी माना जाता है। मां के शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है और इनकी दस भुजाएं है जो खड्ग, बाण, अस्त्र-शस्त्र आदि से विभूषित हैं इसके साथ ही उनका ये स्वरुप सिंह पर विराजमान है। इनकी मुद्रा युद्ध के लिए उद्यत रहने की होती है। जब महिषासुर के साथ माता दुर्गा का युद्ध हो रहा था, तब माता ने घंटे की टंकार से असुरों का नाश कर दिया था।
मां के स्वरुप से निर्भयता और विनम्रता का होता है विकास:-
देवी चंद्रघंटा की आराधना से साधक में वीरता और निर्भयता के साथ ही सौम्यता और विनम्रता का विकास होता है। इसलिए हमें चाहिए कि मन, वचन और कर्म के साथ ही काया को विहित विधि-विधान के अनुसार परिशुद्ध-पवित्र करके चंद्रघंटा के शरणागत होकर उनकी उपासना-आराधना करनी चाहिए। इससे सारे कष्टों से मुक्त होकर सहज ही परम पद के अधिकारी बन सकते हैं। मां के इस स्वरुप की पूजा करते समय एक मंत्र का जाप करना काफी कल्याणकारी रहता है वो मंत्र है…पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकेर्युता। प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥
मां की उपासना से हम समस्त सांसारिक कष्टों से विमुक्त होकर सहज ही परमपद के अधिकारी बन सकते हैं। मां चंद्रघंटा नाद की देवी हैं, इसलिए इनकी कृपा से साधक स्वर विज्ञान यानी गायन में प्रवीण होता है और जिस पर इनकी कृपा होती है, उसका स्वर इतना मधुर होता है कि उसकी आवाज सुनकर हर कोई उसकी तरफ आकर्षित हो जाता है ।