नई दिल्ली। आज कल दाम्पत्य जीवन में कई तरह के तनावों के चलते आपसी रिश्ते टूटने के कगार पर पहुंच जाते हैं। लोग इस प्यार भरे विश्वास भरे रिश्ते से इस कदर उब जाते हैं कि वो इन रिश्तों से बाहर निकलने की कोशिश करने लगते हैं। जब आपसी मनमुटाव और झगड़े इस कदर एक दूसरे पर हावी हो जाते हैं जो रिश्तों की डोर टूटने के कगार पर आ जाती है। इस दौरान हमको लगता है कि हम अकेले जिन्दगी गुजार सकते हैं । लेकिन ऐसा नहीं है इसके पीछे वैज्ञानिक तथ्य होने के साथ शारीरिक और मानसिक कारणों के साथ आध्यात्मिक कारण भी है। क्योंकि कई बातों को लेकर जब तक स्त्री और पुरूष साथ नहीं होते हैं तो दोनों ही अधूरे माने जाते हैं।
दोनों के मिलन और संयोग से ही जीवन का खालीपन खत्म होता है। क्योंकि कहीं ना कहीं दोनों ही अपूर्ण होते हैं एक दूसरे को पूर्ण करने को ही दाम्पत्य जीवन कहा जाता है। जब आप एक दूसरे की इसी अपूर्णता को लेकर उसे कहते हैं तो इस रिश्ते में दरार आने लगती है। हमें इसी दरार को भरते हुए अपूर्ण को पूर्ण बनाकर जीवन का आंनद उठाना चाहिए। क्योंकि दाम्पत्य जीवन ही एक दूसरे के लिए त्याग समर्पण जैसी भावनाओं को जन्म देकर इस रिश्ते को जन्म जन्मान्तर का बंधन बना देता है।
सात फेरों और सात वचनों से बंधा ये रिश्ता इन सात बातों पर टिका रहता है। जिसमें प्यार, त्याग और समर्पण का रस मिला होता है। इस गंध से आपके जीवन में महक और इसकी खूबसूरती से लाइफ निखार आ जाता है। आईये जानते हैं सात फेरों और सात वचनों के इस बंधन की सात बातें।
संयम
ये रिश्ता प्यार का है, संयोग का है और एक दूसरे को समझने का इस रिश्ते में संयम का बड़ा स्थान है। क्योंकि दो अन्जान या यूं कहें कि दो ऐसे इंसान जिनके रंग रूप आदतें अलग-अलग हैं। लेकिन वो एक साथ प्यार मोहब्बत से रहने के लिए राजी है। ऐसे में कई बदलाव आ जाते हैं, इसलिए उनको अपनी कई भावनाओं और आदतों पर संयम या नियंत्रण रखना होगा। जैसे कामवासना, क्रोध, लोभ, अहंकार तथा मोह आदि पर संयम रखना होगा।
संतुष्टि
इस रिश्ते में पति पत्नी एक दूसरे के पूरक के तौर पर रिश्ते की गाड़ी को लेकर चलते हैं। ऐसे में इन दोनों को समय और हालात के साथ कई बार समझौता कर हुए अपनी गाड़ी चलानी चाहिए। जीवन में जो सुख-सुविधाएं आपको मिल रही हैं उसमें संतोष करते हुए शांति से जिन्दगी गुजारने के लिए प्रयास करना चाहिए। एक दूसरे के ऊपर दवाब बनाकर आप अपने रिश्तों में दूरियां बनाने की शुरूआत कर सकते हैं इसलिए जितना मिले उसमें संतुष्टि का भाव लाकर चलना चाहिए।
संतान
दाम्पत्य जीवन में संतान का स्थान बड़ा ही सार्थक होता है। क्योंकि पति-पत्नी के बीच रिश्तों की डोर को ये ही किरदार संभाल कर रख पाता है। कई बार दूरियां बढ़ जाती हैं, लेकिन इस किरदार के चलते फिर ये दोनों एक दूसरे के करीब आ जाते हैं। दोनों के बीच मधुर संबंध बने रहे और विश्वास बना रहे इसके लिए आपके बच्चे एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसलिए विवाह और दाम्पत्य जीवन में बिना संतान के इसकी पूर्णता नहीं मानी जाती है।
संवेदनशीलता
दाम्पत्य जीवन की डोर एक दूसरे के प्रति सहजता के साथ भावनात्मक तौर पर जुड़ी होती है। इस रिश्ते में एक दूसरे की कद्र करना और एक दूसरे की भावना समझना दोनों के लिए जरूरी है। बिना कहे हाव-भाव से ही एक दूसरे की बात के समझ जाना ही पति-पत्नी के बीच बेहतर संबंधों को दिखाता है। क्योंकि ये रिश्ता संवेदनशीलता पर निर्भर करता है।
संकल्प
इस रिश्ते में पति-पत्नी को एक दूसरे के प्रति वदाफारी के साथ इस रिश्ते को हर मोड़ पर साथ देकर संभालने और बचाने के प्रति संकल्पित रहना चाहिए। क्योंकि दृढ़ संकल्प से ही इस रिश्तों की डोर टिकी होती है। इस रिश्ते में दोनों को अपना कर्तव्य निभाना चाहिए।
शारीरिक,आर्थिक और मानसिक मजबूती
वैवाहिक जीवन में तीन बाते सबसे मुख्य होती हैं इस रिश्ते को सफलता और खुशहाली पूर्वक निभाने के लिए। दोनों को शारीरिक,आर्थिक और मानसिक तौर पर सशक्त होना चाहिए। दोनों की हर मजबूती रिश्तों की डगर को ज्यादा मजबूती से बनाए रखती है।
समर्पण
रिश्तों की इस डोर का टिकना सबसे ज्यादा इस बात पर निर्भर करता है, कि दोनों एक दूसरे के लिए कितने समर्पित हैं। इस रिश्तों को समर्पण के साथ ही जीया जाता है। एक दूसरे के लिए अपनी इच्छाओं और आवश्यकताओं से समझौता करना ही एक दूसरे के प्रति बड़ा समर्पण है। इसके लिए दोनों को तैयार रहना चाहिए।