जयपुर। एक तरफ चार साल के अंदर देश के चार शहरों में मेट्रो का काम 10 किलोमीटर से बढ़कर 28 किलोमीटर तक पहुंच गया है तो वहीं दूसरी तरफ ज्यपुर मेट्रो चार साल बाद भी ढ़ाई किलोमीटर का सफर भी शुरू नहीं कर पाई है। सैकंड फेज की डीपीआर का तो दूर-दूर तक अता-पता ही नहीं है,जिसमें से इसमें दो बार बदलाव हो चुके हैं। छह करोड़ की लागत से तीसरी बार विदेशी कंपनी से डीपीआर तैयार कराई जा रही है, जिसमें चार साल बीत गए हैं। दूरी नहीं बढ़ने से यात्री नहीं बढ़ रहे और घाटा निरंतर बढ़ता जा रहा है। मेट्रो को 31 माह में केवल 85 करोड़ की आय हुई है, जबकि खर्चा 151 करोड़ हुआ है।
मानसरोवर से चांदपोल के बीच 9.5 किमी में मेट्रो का संचालन होने पर दूसरे फेज-1बी चांदपोल से बड़ी चौपड़ के बीच ढाई किमी के बीच मेट्रो का संचालन होना था। इसका शिलान्यास अक्टूबर 2013 में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने किया था। चार साल में मेट्रो प्रशासन ने लोगों को अभी तक सिर्फ सुरंग दिखाई है। छोटी चौपड़ पर मेट्रो स्टेशन की खुदाई पूरी हुई है। बड़ी चौपड़ पर तो यह काम भी पूरा नहीं हुआ, जबकि सितंबर में यहां मेट्रो शुरू करने का दावा कर रहे हैं। जयपुर मेट्रो ऐसी है, जिस पर पूर्ण स्वामित्व राज्य सरकार है। इसलिए निर्माण की धीमी गति होना माना जा रहा है। दबाव नहीं होने से राज्य सरकार मनमर्जी से काम करती है।
वहीं गुड़गांव मेट्रो प्राइवेट कंपनी, हैदराबाद और मुंबई पीपीपी मोड पर और कोलकाता मेट्रो का संचालन केंद्र सरकार कर रही है। जयपुर शहर में जब मेट्रो का संचालन किया गया था तो यह देश का छठा शहर था। इसके बाद चेन्नई, कोच्ची, हैदराबाद और लखनऊ में मेट्रो ट्रेन की सेवा शुरू की गई। शुरू होने के बाद भी ये सभी शहर जयपुर मेट्रो को पीछे छोड़ते हुए कई किमी आगे बढ़ गए, जबकि जयपुर मेट्रो 9.5 किमी पर अटकी हुई है।मेट्रो बनने में कोई देरी नहीं हुई है। टनल में मेट्रो बनाने में कम से कम 5 साल लगते हैं। यह स्थिति अन्य प्रदेश में है। फेज-1बी के निर्माण को 4 साल पूरे हो गए हैं। एक साल बाद इस पर मेट्रो चलाने की कवायद है।