नई दिल्ली। काफी समय से लालू और नीतीश के बीच खीचातानी चल रही थी। जिसका अंत बुद्धवार की शाम को हो गया। नीतीश ने लालू और कांग्रेस के साथ गठबंधन तोड़कर मोदी सरकार के साथ मिलकर एक नई सरकार का गठन किया। नीतीश ने बुद्धवार की शाम राज्यपाल को इस्तीफा सौंपकर लालू से गठबंधन तोड़ लिया और अगले ही दिन मोदी सरकार के साथ मिलक गुरूवार को दोबारा बिहार के सीएम पद की शपथ ग्रहण की। मात्र 17 घंटों में बिहार की सत्ता ही पलट गई और ये सब नीतीश के इस्तीफा देने की वजह से हुआ। नीतीश के शपथ लेते ही उनके पुराने जोड़ीदार सुशील कुमार उपमुख्यमंत्री बन गए। तीन महीनों से सुशाल मोदा लालू के परिवार के खिलाफ वार पर वार किए जा रहे थे। लालू के खिलाफ रोज कोई न कोई दस्तावेज प्श किए जा रहे थे जिससे महागठबंध में दरारे आने लगी। लेकिन असली वजह ये नहीं थी। दरअसल 2005 से बिहार ने गवर्नेस के क्षेत्र में एक लंबी झलांग लगाई है और 2017 आते-आते उसकी रफ्तार धीमी पड़ गई। जिसका इसर नीतीश के इस्तीफे से साफ जाहिर हो चुका है।
बता दें कि अब नीतीश और सुशील मोदी का कहना है कि इस वक्त बात बिहार के हितों की है जिसके साथ समझोता नहीं किया जा सकता। अब असली मुद्दा बिहार के हितों की रक्षा करना है। जिसमें शिक्षा, बुनियादी ढांचा, स्वास्थ्य और सामाजिक सुधार के कार्यक्रम जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र शामिल हैं। आंकड़ों में भी यह बात स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगी थी। इसको लेकर बिहार के लोगों में बेचैनी थी। 2005 से लेकर 2013 तक यही जदयू-भाजपा गठबंधन इस मोरचे पर बेहद सफल रहा था। लोग उम्मीद कर रहे थे कि जदयू-राजद गठबंधन बिहार के हितों की रक्षा करेगा और पुराने दौर में ले जायेगा। लेकिन, ऐसा नहीं हुआ। राजद लगातार स्पीड ब्रेकर की भूमिका में था।
वहीं जदयू-राजद सरकार में स्वास्थ्य, शिक्षा और सड़क क्षेत्र के काम जो पिछले एक दशक से फोकस में रहे थे, वे पटरी से उतर गये। बुनियादी कामों का जिनसे बदलाव दिखाई देता है, उन विभागों का काम ढीला पड़ गया। मंत्रियों पर तो भ्रष्टाचार के आरोप नहीं लगे, लेकिन काम की दिशा भटक गयी, उनकी रफ्तार धीमी पड़ गयी। मेरा मानना है कि जदयू-भाजपा की सरकार है या जदयू-राजद की सरकार, सवाल इससे कहीं बड़ा है।
साथ ही असली चिंतन का विषय है कि बिहार को कैसे आगे ले जाया जाये। विकास की धारा जो टूट गयी है, उसे फिर से कैसे जोड़ा जाये। राजनीति के तो अपने गुणा-भाग हैं, लेकिन असली मुद्दा है कि बिहार के हितों की रक्षा कैसे की जाये। कैसे बिहार के लोगों तक आर्थिक समृद्धि पहुंचायी जाये और सामाजिक समरसता बरकरार रखी जाये। पुराने दौर को याद करें, तो बिहार की आर्थिक प्रगति राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बन गयी थी।