गाजीपुर। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों से पहले एक बार फिर सपा में पारिवारिक कलह बढ़ सकती है। समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव द्वारा जारी सपा प्रत्याशियों की सूची सूबे में एक बार फिर चाचा-भतीजे के बीच कलह की वजह बन सकती है, क्योंकि गैंगस्टर से राजनीति में आए मऊ के बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी के बड़े भाई शिबगतुल्लाह अंसारी और कई दागी प्रत्याशियों के नामों पर शिवपाल यादव ने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की सहमति नहीं होने के बावजूद भी मुहर लगा दी है।
हाल ही में शिवपाल यादव द्वारा जारी की गई सूची मोहम्दाबाद विधानसभा के साथ पूरे जनपद में चर्चा का विषय बनी हुई है। चुनाव के लिए फिलहाल 23 उम्मीदवारों की जारी सूची में सीएम अखिलेश यादव की पसंद रहे सपा जिलाध्यक्ष राजेश कुशवाहा का टिकट काट कर मोख्तार अंसारी के भाई एवं कौमी एकता दल के वर्तमान विधायक सिगबततुल्लाह अंसारी को मोहम्मदाबाद (गाजीपुर) सीट से प्रत्याशी बनाया गया है। जबकि कौएद के सपा में विलय का मुख्यमंत्री ने खुलकर विरोध किया था, सूची में एक अन्य विवादित नाम अतीक अहमद का भी है, जिन्हें कौशांबी की एक रैली में मुख्यमंत्री ने मंच तक से उतार दिया था। बावजूद इसके सपा मुखिया ने दोनों नामों के साथ कई ऐसे नामों पर मुहर लगा दी जिसपर विवाद बढ़ सकता है।
वर्तमान उत्तर प्रदेश के सपा अध्यक्ष शिवपाल का मानना है कि जीतने की प्रबल संभावनाओं और पार्टी के प्रति निष्ठा को देखते हुए उम्मीदवारों का चयन किया गया है। जबकि जानकार ऐसा नहीं मानते उनका मानना है कि पारिवार में उपजे विवाद के बाद सपा के अंदर और बाहर सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है, सहयोगी गठबंधन के नाम पर ज्यादा सीटें चाहते हैं जबकि सपा ऐसा नहीं चाहती तब ऐसे में सपा मुखिया और शिवपाल यादव ने जीत को लक्ष्य करते हुए उन बाहुबलियों और दागियों पर विश्वास जताया है जिन्हें अखिलेश यादव ही सार्वजनिक मंच से नकार चुके थे बावजूद इसके अखिलेश यादव व्दारा जारी सूची के कुछ प्रत्याशियों को बदल दिया गया है और ऐसे में अखिलेश खेमा इसे बदले की कार्रवाई के रूप में लेता है तो आगामी विधानसभा चुनाव 2017 में सपा के साथ भितरघात कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी क्योंकि.. समय के साथ सियासत का चेहरा भी बदल चुका है। खद्दर जितनी ज्यादा सफेद हुई है उसके पीछे उतनी ही स्याह सच्चाई है।
वरिष्ठ सपा नेता व पूर्व एमएलसी बच्चा यादव मानते हैं कि सत्ता के गलियारे में जहां कभी राजनीति जमीन से जुड़े नेताओं की विरासत मानी जाती थी, समय बदलने के साथ वह अब धनबल और बाहुबल के हाथों में खेल रही है और इससे अछूता हमारा जिला गाजीपुर भी नहीं है, हालाँकि यहां से आजादी के लिये शहादत के साथ राजनीतिक और कूटनीतिक शुरूआत भी हुई थी। इस बार भी स्थिति कमोबेश कुछ इसी तरह की है। समीकरण फिर धनबल और बाहुबल के इर्द-गिर्द घूम रहा है, इसका उदाहरण सिर्फ टिकट ही नहीं प्रदेश स्तर पर मोख्तार अंसारी और शिबगतुल्लाह अंसारी के बेटों को सपा में पद देकर स्थापित करना भी इस बात को साबित करता है कि वर्षों की मेहनत कर रहे लोगों से ऐसे लोग ऊपर नेताओं की आज भी पहली ही पसंद हैं।
वर्तमान राजनीति में प्राय: चुनावी मैदान में नोट और और बाहुबल का समीकरण भारी पड़ता देखा गया है। इसके अलावा काला कारोबार करने वाले बाहुबली और माफिया भी सफेद खद्दर पहनकर संसद में जाना चाहते हैं इसके लिये वह साम, दाम, दण्ड और भेद अपनाने में गुरेज नहीं करते। अगर आप गौर करें तो अंसारी बंधुओं ने अपनी राजनीतिक जमीन बचाए रखने के लिए अपनी कौम के साथ दलितों और मजलूमों को साथ लेकर राजनीतिक सफर की शुरूआत की, जिसमें कई बार उन्होंने दल भी बदला। कम्यूनिस्ट, बसपा, सपा, फिर बसपा, कौएद, कौएद अलायन्स और आज फिर सपा का दामन थामा है। हालांकि इन राजनीतिक उछल कूद के बीच इस परिवार पर कई अपराधिक मुकदमें भी दर्ज हुए, राबिनहुड की छवि बनाकर मोख्तार अंसारी को इस परिवार ने अपना स्टार प्रचारक बना राजनीतिक सिक्का वोटरों के बीच चला रखा है और वोटर भी इन्हीं समीकरणों पर अपना वोट कुर्बान कर देता है।
विपक्षी पार्टियों के नेताओं की माने तो अंसारी बंधुओं की सपा में वापसी इस बात को दर्शाती है कि इनका डीएनए यानि सोच भी एक है, हालांकि नोटबंदी के बाद देखना है कि आगामी विधानसभा चुनावों में सपा का ये नया पैंतरा क्या गुल खिलाता है क्योंकि हाल के पिछले चुनावों में माफियाओं और धनपशुओं की हार से उम्मीद जगी है और जरूरत है जनमत के जागने की और जनता को इस पर जाति धर्म से ऊपर उठकर मंथन करने की भी जरूरत है।