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पहली क्रांति की लड़ाई के प्रमुख चेहरे, जाने क्या थी भूमिका

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नई दिल्ली। देश में प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, सिपाही विद्रोह और भारतीय विद्रोह के नाम से जानी जाने वाली 1857 की क्रांति में मंगल पांडे रानी लक्ष्मी बाई, तात्या टोपे, नाना साहब, बेगम हजरत महल, बहादुर शाह जफर, वीर कुंवर सिंह, झल्लरी बाई, मौलवी अहमद खां, और अमर चंद बाठिया ने अहम भूमिका निभाई। आज हम आपको इन्हीं क्रांतिकारियों के बारे में बताने जा रहे हैं कि 1857 की क्रांति में इनकी क्या भूमिका रही।

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मंगल पांडे

मंगल पांडे का जन्म 30 अक्टूबर 1831 को उत्तर प्रेदश के जो जिले में ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इन्होंने सन 1857 की क्रांति में अहम भूमिका निभाई थी। मंगल पांडे को 1857 की क्रांति का पहला क्रांतिकारी कहा जाता है। मंगल पांडे को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का अग्रदूत माना जाता है। ये अग्रदूत पूरे भारत के किसान और जवानों को एक साथ लेकर मिलकर लड़ा था। हालांकि इनको ब्रिटेश शासन द्वारा दबा दिया गया। मंगल पांडे के बाद ही भारत में बरतानिया हुकूमत का आगाज हुआ। 1857 में मंगल पांडे द्वारा अंग्रेजों के खिलाफ लगाई गई विद्रोह की चिंगारी बुझी नहीं बल्कि इस चिंगारी ने एक महीने बाद ही मेरठ छावनी में बगावत का बिगुल बजा दिया। जो देखते ही देकते पूरे उत्तर भारत में फैल गया। इसके बाद अंग्रेजो को एहसास हुआ कि अब भारत पर राज करना मुश्किल हो गया है। इसके बाद ही भारत में अंग्रेजों की ओर से 34735 कानून भारत की जनता पर लागू किए गए ताकि कोई और मंगल पांडे की तरह भारतीय पर शासन करने वालों के खिलाफ बगावत न कर सके। मंगल पांडे को 18 अप्रैल 1857 को फांसी की सजा सुनाई गई। लेकिन उन्हें उनकी फांसी के तय वक्त से दस महीने पहले ही फांसी दे दी गई।

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रानी लक्ष्मी बाई

1857 की क्रांति में रानी लक्ष्मी बाई की भी अहम भूमिका रही है इनको भी भारतीय सेनानी के रूप में जाना जाता है। रानी लक्ष्मी बाई का जन्म 19 नवम्बर 1835 में वाराणसी में हुआ था। रानी लक्ष्मी बाई के बचपन का नाम मणिकर्णिका था। लेकिन प्यार से सभी उनको मनु कहकर बुलाते थे। लक्ष्मी बाई के पिता का नाम मोरपंत और माता का नाम भागीरथी बाई था जो धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थी। जब रानी लक्ष्मी बाई सिर्फ 4 साल की थी तभी उनकी मां का निधन हो गया और उनके पालन पोषण की दिम्मेदारी उनके पिता पर आ गई। लक्ष्मी बाई मराठा राज्य झांसी की रानी थी। उन्हें स्वतत्रता की विरांगना भी कहा जाता है। लक्षमी बाई ने मात्र 23 साल की उम्र में अंग्रेजा सेना से युद्ध किया और वीरगति प्रात की रानी लक्ष्मी बाई ने अपने जीते जी अंग्रेजों को झांसी पर कब्जा नहीं करने दिया। इसीलिए उन्हें झांसी की रानी कहा जाता है।

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