नई दिल्ली। देवताओं के वास्तुशास्त्र के ज्ञाता और ब्रह्मांड का निर्माण करने वाले भगवान विश्वकर्मा की आज जयन्ती है । भगवान विश्वकर्मा को विश्व का प्रथम वास्तुकार माना जाता है। आज के दिन लोग अपने कारखानों और संस्थानों में पूजन अर्चन करते हैं। इस दिन लोग अपने यंत्रों और मशीनों का पूजन अर्चन कर आपस में प्रसाद ग्रहण करते हैं। इस दिन सभी औजारों के भी पूजन किया जाता है। वास्तुकारी से जुड़े लोग इस दिन को बड़े ही उल्लास के साथ मनाते हैं।
मान्यता है कि इस चराचर श्रष्टि की रचना का स्वरूप ब्रह्मा ने बनाया था। लेकिन इस मूर्तरूप देने का काम उन्होने भगवान विश्वकर्मा को सौंपा था। विश्वकर्मा ने स्वर्ग लोक, सोने की लंका और इन्द्रप्रस्थ के साथ भगवान कृष्ण की द्वारिका का भी निर्माण किया। ये भी रचनाएं भगवान विश्वकर्मा की ही देन रही थीं। बताया जाता है कि भगवान विश्वकर्मा का जन्म देवताओं और राक्षसों के बीच हुए समुद्र मंथन में हुआ था। हर साल अश्विन मास के कृष्णपक्ष की प्रतिपदा तिथि को विश्वकर्मा पूजन का आयोजन किया जाता है। पंचाग के अनुसार आज इसका शुभ महूर्त दोपहर में 12 बजकर 54 मिनट पर है।
भगवान विश्वकर्मा का पूजन सभी यंत्रिकी सस्थानों के साथ वास्तु और तकनीकि क्षेत्र से जुड़े हर व्यक्ति द्वारा किया जाता है। इस पूजन का कोई जटिल विधि-विधान नहीं है। इस पूजन में यजमान सपत्नीक कार्यस्थल पर बैठकर भगवान विष्णु का ध्यान करें। इसके बाद हाथ में पुष्प अक्षत लेकर भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए कार्य स्थल पर छिड़कें। अपने हाथ से कार्यस्थल पर रक्षा सूत्र बांधे इसके बाद अपने हाथ पर रक्षा सूत्र बांधे साथ ही पुष्प से जल लेकर कलश पर डालें। मन में भगवान का ध्यान करते हुए दीप और धूप से आरती करें। इसके बाद कशल की स्थापना कर उसका विधिविधान से पूजन करें।