नई दिल्ली। राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने भारत सरकार के कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग को पत्र लिखकर कहा कि अनुसूचित जनजाति के कर्मचारी को किसी भी तरह की बड़ी सज़ा और दण्ड से पहले मामले की जांच के लिए गठित समिति में अनुसूचित जनजाति के कम से कम दो सदस्य अवश्य होने चाहिए। ताकि जांच करने वाले को ये न लगे कि उसकी जांच अनुसूचित जनजाति का समझ की जा रही है इसीलिए जांच समिति में दो अधिकारी के अनुसूचित जनजाति के होने चाहिए।
बता दें कि अनुसूचित जनजाति के कार्मिक प्राकृतिक न्याय से वंचित न हों, इसके लिए आयोग ने यह निर्णय किया है। आयोग की संस्तुति के अनुसार मंत्रालयों और विभागों में अगर जांच के लिए अनुसूचित जनजाति के अधिकारी मौजूद नहीं हैं तो उस समिति में अन्य विभागों के अनुसूचित जनजाति के अधिकारियों को शामिल किया जाये।
वहीं संविधान के अनुच्छेद 338 के तहत आयोग अनुसूचित जनजाति के कर्मचारियों के लिए बेहतर और उपयुक्त सेवा माहौल सुनिश्चित कराने के लिए अधिकृत है। आयोग ने कई मामलों में पाया है कि जनजाति के कर्मचारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करते वक्त कई बार उल्लिखित नियमों का पालन नहीं किया जाता और जांच शुरू कर दी जाती है। जिससे जांच में ज्यादातर शिकायते आती हैं। इसलिए जांच करते वक्त संविधान के अनुच्छेद 338 का ध्यान रखा जाना जरूरी है।