नई दिल्ली । एनजीओ को रेगुलेट करने के मामले पर सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि वे चार हफ्ते में ये बताएंगे कि एनजीओ को रेगुलेटर करने और फंड का दुरुपयोग रोकने के लिए क्या नया कानून बनाए जाने की जरूरत है। एएसजी तुषार मेहता ने चीफ जस्टिस जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली बेंच से कहा कि इस बारे में जल्द ही उच्च स्तरीय फैसला लिया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उल्लंघन करने वाले एनजीओ के खिलाफ कार्रवाई करने में कानून आड़े नहीं आ रहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वो सरकार को ये नहीं कहेंगे कि वो कानून बनाए या नहीं। अगर सरकार इसपर कानून बनाती है तो अच्छा है। पिछले 26 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा था कि क्या वे एनजीओ को रेगुलेटर करने और फंड का दुरुपयोग करने वालों के खिलाफ कानून बनाना चाहते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इस बारे में सरकारी दिशानिर्देश पर्याप्त नहीं हैं और इसके लिए कानून बनाने की जरूरत है । कोर्ट ने केंद्र को निर्देश दिया कि इस बारे में आठ हफ्ते के अंदर हलफनामा दाखिल करें।
बता दें कि इसके पहले पांच अप्रैल को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एनजीओ को मान्यता देने और उन्हें मिलने वाले सरकारी फंड की निगरानी के लिए उठाए जाने वाले कड़े कदमों संबंधी हलफनामा दाखिल कर सुझाव दिया था कि सभी एनजीओ जो चाहते हैं कि उन्हें सरकारी फंड मिले तो वे नए सिरे से नीति आयोग में रजिस्ट्रेशन कराएं । हर एनजीओ को एक यूनिक आईडी प्रदान किया जाएगा जिस पर विदेशी चंदा नियमन अधिनियम और आयकर कानून लागू होगा । केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में सुझाव दिया था कि सभी एनजीओ को हर साल अपने आडिटेड अकाउंट , आयकर रिटर्न, कार्यक्षेत्र और काम करनेवाले व्यक्तियों का विवरण देना होगा। एनजीओ की मान्यता उनके आंतरिक प्रशासन और आचरण की जांच करने के बाद ही दिया जाएगा। उन्हें मान्यता देते समय उनके पहले के रिकॉर्ड को आधार बनाया जाएगा।
वहीं केंद्र सरकार ने सुझाव दिया था कि एनजीओ द्वारा फंड इस्तेमाल की तीन स्तरीय जांच की जाएगी। उनके द्वारा किए गए कार्यों की गुणवत्ता की भी जांच होगी। सुझाव में यह भी कहा गया था कि एनजीओ को ये भी बांड भरकर देना होगा कि अगर काम नहीं हुआ पाया गया तो उन्हें दस फीसदी ब्याज के साथ रकम वापस लौटाना होगा। अगर फंड की हेराफेरी पाई गई तो उनके खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज किए जाएंगे।
साथ ही पिछले दस जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने एनजीओ को मिलने वाले सरकारी फंड की निगरानी के लिए प्रभावी तंत्र न बनाने पर केंद्र को फटकार लगाई थी। सीबीआई ने कहा था कि देशभर में करीब 33 लाख एनजीओ हैं जिसमें से केवल तीन लाख एनजीओ ने ही अपना आडिटेड लेखा जोखा सरकार के पास जमा किया है । इसके बाद चीफ जस्टिस जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली बेंच ने आदेश दिया था कि सभी एनजीओ के खातों और लेखा जोखा की जांच 31 मार्च तक पूरी की जाए । सुनवाई के दौरान कोर्ट ने सरकार की तरफ से हिसाब न लिए जाने पर नाराज़गी जताते हुए पूछा था कि क्या असल में सरकार में बैठे लोग ही इन पैसों का इस्तेमाल करते हैं।
इतना ही नही कोर्ट ने आदेश दिया था कि जिन एनजीओ ने पब्लिक फंड का दुरुपयोग किया है उनके खिलाफ सिविल और क्रिमिनल केस की प्रक्रिया शुरू करें। सुप्रीम कोर्ट ने एनजीओ को मान्यता देने के लिए नियम और दिशानिर्देश तय करने का आदेश दिया । उन्हें सिर्फ ब्लैक लिस्टेड करना काफी नहीं है उनके खिलाफ सरकारी पैसे के गबन का मामला दर्ज होना चाहिए ।सुप्रीम कोर्ट में ये मामला 5 साल पहले दाखिल किया गया था जिसमें समाजसेवी अन्ना हज़ारे के एनजीओ हिंद स्वराज ट्रस्ट समेत महाराष्ट्र के कई एनजीओ पर बैलेंसशीट दाखिल न करने का आरोप लगाया गया था।बाद में सुप्रीम कोर्ट ने मामले का दायरा बढ़ाते हुए केंद्र से पूरे देश के एनजीओ पर जवाब मांगा था।