नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले कि सुनवाई करते हुए अहम फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि देश की कोई भी अदालत पति को इस बात के लिए मजबूर नहीं कर सकती कि वो अपनी पत्नी को जबरदस्ती अपने साथ रखे। अगर वो अपनी पत्नी को अपने साथ नहीं रखना चाहता तो ये उसका निजी मामला है, इसमें कोर्ट को कोई हक नहीं है कि वो पति पर ये दबाव बनाए कि वो अपनी पत्नी को अपने पास रखे। आपको बता दें कि कोर्ट ने ये फैसला उस दौरान सुनाया जब कोर्ट में एक पति-पत्नी के बीचे सुलहा करवाने का एक मामला चल रहा था। कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के दौरान मद्रास हाईकोर्ट के उस जमानत आदेश को भी बहाल कर दिया है, जिसे पति द्वारा सुलहा समझौता मानने से इनकार करने के कारण रद्द कर दिया गया था।
आपको बता दें कि कोर्ट जिस फैसले कि सुनवाई कर रहा था उसमें पति पेश से पायलट है, जिसे कोर्ट ने अलग रह रही पत्नी और बेटे की परवरिश के लिए 10 लाख रुपये का अंतरिम गुजारा भत्ता जमा कराने के भी आदेश दिए है। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश आदर्श गोयल और यू यू ललित की खंडपीठ ने कहा कि हम एक पती को मजबूर नहीं कर सकते कि वो जबरदस्ती अपनी पत्नी को अपने पास रखे, क्योंकि ये एक मानवीय रिश्ता है। कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान मौजूद पति से कहा कि आप अदालत में 10 लाख रुपये जमा कराए ताकि इस राशि को आपकी पत्नी बिना किसी शर्त के निकाल सके और अपनी और अपने बच्चे की फौरी जरूरतों को पूरा कर सके।