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भारत को असली ख़तरा आतंकवादियों से नहीं उनके मददगारों से है

home ministry sources says around 250 terrorist still present in valley भारत को असली ख़तरा आतंकवादियों से नहीं उनके मददगारों से है

दीपावली की रात जेल से भागे 8 आतंकवादी जो कि प्रतिबंधित संगठन सिमी से ताल्लुक रखते थे उन्हें मध्यप्रदेश पुलिस 8 घंटे के भीतर मार गिराने के लिए बधाई की पात्र है। बधाई स्थानीय लोगों को भी जिन्होंने पुलिस की मदद कर के देशभक्ति का परिचय देते हुए किसी बड़ी आतंकवादी घटना रोकने में प्रशासन की मदद की। देश में यह एनकाउंटर अपने आप में शायद ऐसा पहला आप्रेशन है जिसमें पुलिस ने फरार होने के आठ घंटों के अन्दर ही सभी आतंकवादियों को मार गिराया हो।

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इन सभी का बेहद संगीन आपराधिक रिकॉर्ड रहा है हत्या लूट डकैती से लेकर बम धमाकों तक ऐसा कोई काम नहीं जो इन्होंने न किया हो। इनमें से तीन आतंकी तो इससे पहले 30 सितंबर -1 अक्तूबर 2013 की दरमियानी रात को खंडवा जेल से भी भाग चुके थे और इन्हें 14 फरवरी 2016 को ओड़िशा के राउरकेला से दोबारा गिरफ्तार किया गया था ।फरारी के दौरान इन आतंकवादियों ने 1 फरवरी 2014 आंध्र प्रदेश के करीमनगर इलाके में बैंक डकैती , 1 मई 2014 को चैन्नई रेलवे स्टेशन के बेंगलुरु गुवाहाटी ट्रेन में धमाका , 10 जुलाई 2014 को पुणे के फरसखाना और विश्रामबाग पुलिस थानों में धमाके ,6 दिसंबर 2014 को रूड़की में एक रैली में धमाका ऐसी ही अनेकों वारदातों को अंजाम दिया था। ऐसे में जेल से फरार होने के बाद ये आठों किसी बड़ी आतंकवादी घटना को अंजाम नहीं देते ऐसा कैसे कहा जा सकता है ? कुल मिलाकर ये खूंखार कैदी आम कैदी नहीं थे और इस देश के मासूम नागरिकों की जान की कीमत निश्चित ही इन आतंकवादियों की जान से ज्यादा है इसलिये मध्यप्रदेश पुलिस द्वारा की गई कार्यवाही अत्यंत ही सराहनीय है। लेकिन इस सब के बीच इन आठ आतंकवादियों को जेल से भागने से रोकने के प्रयास में हमारे एक आरक्षक रामेश्वर यादव शहीद हो गए।

इस एनकाउंटर पर सवाल उठाने वाले बुद्धिजीवियों से एक प्रश्न है कि जो आतंकवादी खाने की थाली को हथियार बनाकर उससे गला रेत कर एक औन ड्यूटी पुलिस कर्मचारी की हत्या कर सकते हैं टूथब्रश से डुप्लिकेट चाबी बना सकते हैं और चादरों के सहारे 30 फीट ऊँची दीवार आसानी से फाँद कर भाग सकते हैं उन्हें जीवन दान देकर क्या हम अपने देश और उसकी सुरक्षा के साथ खिलवाड़ नहीं करते ? क्या हम भूल गए हैं कि जिस आतंकी अजहर मसूद को भारत के सुरक्षा बलों ने 1994 में गिरफ्तार किया था उसे 1999 में अपह्रत इंडियन एअर लाइन्स के विमान के यात्रियों के बदले छोड़ दिये जाने की कीमत हम आज तक चुका रहे हैं ?

एक तरफ सीमा पर आज रोज हमारा कोई न कोई सैनिक देश की सुरक्षा की खातिर शहीद हो रहा है दूसरी तरफ आतंकवादी हमारी पुलिस को ललकार रहे हैं । आतंकवादी हर हाल में आतंकवादी ही होता है उसका मानवता से कोई संबंध नहीं होता। कब तक हम मानवता का खून करने वालों के मानव अधिकारों की बात करते रहेंगे ? कब तक हम अपने शहीद जवानों की शहादत की इज्जत करने के बजाय उस पर सवाल उठाते रहेंगे ? देश की सुरक्षा के लिए जो भी खतरा हों उन पर होने वाली कार्यवाही के समर्थन के बजाय उस पर प्रश्न चिन्ह लगाते रहेंगे ?

हां इस घटना से प्रश्न तो बहुत उठ रहे हैं , वे उठने भी चाहिए और उनके उत्तर मिलने भी चाहिए। प्रश्न यह कि प्रदेश की सबसे बड़ी जेल से इतने खतरनाक आपराधी भागने में सफल कैसे हुए ? क्या हमारी सुरक्षा इतनी कमजोर है कि आठ अपराधी इसे आसानी से न सिर्फ भेद देते हैं बल्कि एक पुलिस वाले की हत्या करके बड़ी आसानी से भाग भी जाते हैं ? संकेत स्पष्ट है अगर वे इन घटनाओं को अंजाम देकर भागने में सफल हुए हैं तो इसमें उनकी बहादुरी नहीं कुटिलता हैं और हमारी कमी सिर्फ़ सुरक्षा में चूक ही नहीं बल्कि प्रशासनिक स्तर पर लापरवाही भी है। क्यों सी सी टीवी कैमरों के बावजूद उनके जेल से भागने के प्रयास जेल अधिकारियों को नजर नहीं आए ? वे तालों की चाबी बनाने में कामयाब कैसे हुए ? एक साथ 35 चादरें कैसे मिल गईं ? जब पहले से ही खुफिया एजेंसियों ने इस प्रकार की घटना की आशंका जाहिर करी थी तो उसे सीरियसली क्यों नहीं लिया गया ?

जेल में कैदियों की क्षमता से अधिक संख्या अव्यवस्था को जन्म देती है जिस कारण जेल के भीतर ही कैदियों का एक दूसरे से संघर्ष या फिर जेल के गार्डों पर हमला कर देने की घटनाएं होती रहती हैं। यह भी सत्य है कि कैदियों को जेल के भीतर ही मोबाइल नशीले पदार्थ व अन्य “सुविधाएं” जेल अधिकारियों की सहायता के बिना उपलब्ध नहीं हो सकती। लेकिन ये कैदी आम नहीं थे क्योंकि यह सभी एक प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन से ताल्लुक रखते थे और इनमें से तीन इससे पहले भी जेल से फरार हो चुके थे , इस सब के बावजूद इनका फिर जेल से भागने में सफल होना जेल प्रशासन की लापरवाही दर्शाता है जिसे उन्होंने त्वरित कार्यवाही करते हुए आठ घंटे में अपनी भूल सुधार कर काफी हद तक अपनी भूल सुधार ली है।

सरकार ने सुरक्षा में चूक के चलते जेल के चार कर्मचारियों को हटा दिया है जिनमें जेल अधीक्षक और एडीजी शामिल हैं लेकिन बात यहाँ खत्म नहीं होती। अभी हाल ही में सपा सासंद मुन्नवर सलीम का पी ए फरहद जासूसी करते हुए पकड़ा गया है। तो त्वरित कार्यवाही तो ठीक है लेकिन इस प्रकार के हमारे बीच के उन लोगों की असली पहचान और उन पर कार्यवाही अधिक आवश्यक है जो आस्तीनों में छिपे हुए हैं और कुछ पैसों के लालच में देश की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं ताकि इस प्रकार की घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकी जा सके।

Neelam Mahendra

 

(डॉ नीलम महेंद्र)

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