नई दिल्ली। श्रीनगर में घाटी के बेकाबू हालातों ने कश्मीर तो कश्मीर देश की सत्ता को भी हिलाकर रख दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से महबूबा मुफ्ती तो महूबूबा मुफ्ती से राजनाथ सिंह सभी की नीदों पर ये हालात भारी पड़ते दिखाई दे रहे है…और हो भी क्यूं ना…क्योंकि इन हालातों पर काबू करने के लिए सुरक्षाबल जैसे ही अपना एक कदम आगे बढ़ाते है वैसे ही पत्थरबाज उनको एक कदम पीछे ढकेल देते हैं।
हाल ही में इन हालातो को अपनी मुट्ठी में कर लेने की जद्दोजहद के बीच जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री ने पीएम मोदी से भी मुलाकात की और उनसे इस समस्या को सुलझाने की अपील भी की।
घाटी के इन्हीं बिगड़ते हालातों को बीच भारत खबर ने भाजपा नेता सुनील भरला से बातचीत की और इस मुद्दे पर उनकी राय जानने की कोशिश की।
खास बातचीत के दौरान सुनील भरला ने राज्य की सत्ता पर काबिज महबूबा मुफ्ती के कामकाज को असफलता की श्रेणी में बताया साथ ही मुफ्ती के इस्तीफे की पेशकश कर डाली। उन्होंने कहा घाटी के हालात इस समय नैतिकता को चुनौती दे रहे हैं।
महबूबा पर पत्थरबाजों के प्रति सॉफ्ट कॉर्नर की बात करते हुए भाजपा नेता ने कहा कि यही सॉफ्ट कॉर्नर उन्हें पत्थरबाजों के खिलाफ सख्त कदम उठाने में अड़ंगा डाल रहा है।
जब भारत खबर ने उनके पूछा कि अभी हाल ही में मीडिया में ऐसी खबरें आ रही थी कि व्हाट्सऐप का इस्तेमाल वहां पर युवाओं को भड़काने में किया जा रहा है इस पर आपकी राय क्या है? इस सवाल का जवाब देते हुए सुनील भरला ने कहा, आजकल सोशल मीडिया का जमाना है और सरकार व्हाट्सऐप पर भेजे जा रहे हिंसक घटनाओं वाले मैसेज पर कार्रवाई कर सकती है। इसके बाबजूद सरकार कोई कार्रवाई नहीं कर रही है। इससे राज्य सरकार की दोहरी मानसिकता का साफतौर पर पता चलता है।
इसके साथ ही जब उनसे एक और सवाल करते हुए पूछा कि भटके हुए युवाओं को रास्ते पर लाने के लिए कौन से ऐसे ठोस कदम है जो सार्थक साबित हो सकते है? तो जवाब में भाजपा नेता ने कहा, जब तक वहां के लोगों में देशभक्ति की भावना नहीं जगेगी, तब तक ऐसा होना नामुमकिन है।
अब वो वक्त आ गया है जब पत्थरबाजों पर कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए ताकि युवाओं के मन में खौफ पैदा हो और वो सेना से डरे ना कि उन पर वार करें।
इसके अलावा उन्होंने घाटी में राष्ट्रपति शासन को जरुरी बताते बुए कहा कि इससे स्थानीय लोगों में अनुशासन आ सकें और सेना आतंकियों, पत्थरबाजों पर सख्ती से कार्रवाई कर सकें।
आशु दास