लखनऊ। समाजवादी पार्टी रजत जयंती समारोह के जरिये अब एक बार फिर एक महागठबंधन को खड़ा करने के लिए आतुर दिख रही है। रजत जयंती को लेकर समाजवादी परिवार का इनता बड़ा आयोजन इस कुनबे को एक छत्र के नीचे लाकर खड़ा कर भाजपा को सत्ता से दूर करने का प्रयास है।
क्योंकि बिहार के बाद उत्तर प्रदेश के राजनीतिक अखाड़े में अगर भाजपा को मात मिलती है तो 2019 की लोकसभा के लिए भाजपा का सफर मुश्किलों भरा होगा। क्योंकि राजनीतिक दृष्टि के साथ सीटों में ये दो सूबे बड़े राज्य के तौर पर हैं।
महागठबंधन पर मुश्किलों के बादल
नीतीश की नाराजगी
बिहार चुनाव के पहले एक महागठबंधन का सूत्रपात हुआ था लेकिन ऐन वक्त पर सपा महागठबंधन से अलग हो गई थी। जिसके बाद नीतीश और मुलायम के बीच दूरियां बढ गई थी। जिसको लेकर तनाव की स्थितियां बनी हैं। सपा के इस रजत जयंती समारोह में नीतीश के शामिल होने से इनकार की खबरें शुरूआत से आ रही थी। इसके बाद खुद सपा सुप्रीमों ने उनको आमंत्रण दिया था। लेकिन अन्तत: नीतीश रजत जयंती समारोह में नहीं आ रहे हैं, इसके साथ ही उन्होंने ने केसी त्यागी को भी पटना तलब कर लिया है। लेकिन जेडीयू के तौर पर शरद का समारोह में पहुंचा तय माना जा रहा है। लेकिन समारोह में पहुंचे शरद यादव ने गोलमोल सा जबाब दे साफ कर दिया कि वो गठबंधन के लिए नही सिर्फ रजत जयंती समारोह में शामिल होने आए हैं। महागठबंधन के बारे में मुलायम से पूछने को कहा।
अजित सिंह और चौटाला की तनातनी
देश में जाट राजनीति के दो सूरमाओं का मिलन कर महागठबंधन का सूत्रपात करने का सपना देखने वाले सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह का सपना इतना आसान नहीं है। इस गठबंधन में की पेंच हैं। अजित और चौटाला भले ही एक मंच पर दिखें पर दोनो अपने तरीकों से जाट राजनीति के दम पर अपनी राजनीति कर रहे हैं। इन दोनों के स्वर भी एक दूसरे से जुदा रहते हैं ऐसे में दोनो को एक घाट पर पानी पिलाना आसान ना होगा।
कांग्रेस का रास्ता
कांग्रेस ने हाल में हुई सपा सुप्रीमो से उसके रणनीतिकार प्रशांत किशोर के जरिए अपनी रणनीति का खुलासा सपा सुप्रीमो से कर दिया है। हांलाकि कांग्रेस ने समारोह से दूरी बनाई हुई है, लेकिन उसकी निगाह अपने विरोधी भाजपा के विरूद्ध एकत्रित हो रहे समाजवादियों के कुनबे पर लगी हुई है। अभी कांग्रेस ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं लेकिन साफ तौर पर भाजपा को सत्ता में रोकने के लिए वो गठबंधन के साथ भी जा सकती है।
जाट और मुस्लिम वोटों को साधने की भूमिका
इस समारोह के जरिए सपा एक बार फिर पश्चिम उत्तर प्रदेश जाट और मुस्लिम वोटों को एक जुट करना सपा के लिए बहुत जरूरी है लेकिन मुजफ्फरनगर दंगे के बाद जाट समुदाय का सपा से अलगाव और अब रालोद का सपा के साथ जाने की खबरें के बाद जाट वोटों के साथ मुस्लिम वोटों पर भाजपा और बसपा की बांछे खिली हैं। ऐसे में इन दोनों दलों को वोटों के बटवारे से रोकने केलिए भी इस गठबंधन का पूरा जोर होगा।
(अजस्र पीयूष शुक्ला)