नई दिल्ली। भगवान शिव और उनका नामों की महिमा से अपरमपार है। भगवान शिव का नाम समस्त मंगलों का मूल एवं अमंगलों का उल्मूलक है। शिव, शंभु और शंकर, ये तीन नाम उनके मुख्य हैं। इनके अलावा भगवान भोले शंकर को सहसत्र नामों और स्वरूपों से जाना जाता है। भोले भंडारी औघड़ दानी शिवशंभू जैसे सहस्त्र नामों ने भगवान शिव शंकर को जाना जाता है। हर नाम के अलग–अलग अर्थ भगवान भोले नाथ से जुडे हैं। ऐसा ही भगवान भोले का एक नाम है त्रिपुरारी। त्रिपुर का अर्थ है लोभ, मोह और अहंकार को दूर करने वाला । मनुष्य के भीतर इन तीन विकारों का वध करने वाले त्रिपुरारी शिव की शक्ति का पुराणों में प्रतीकात्मक वर्णन अभिभूत करने वाला है । इसलिये तो सच्चे मन से महाकाल के महास्वरूप के दर्शन वंदन और अभिषेक से मानव मात्र के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।
जटाजूट में सुशोभित चंद्रमा, सिर से बहती गंगा की धार, हाथ में डमरू, नीला कंठ और तीन नेत्रों वाला दिव्य रूप किसके हृदय को आकर्षित न कर लेगा। भगवान शंकर का तीसरा नेत्र ज्ञानचक्षु है। यह विवेकशीलता का प्रतीक है। इस ज्ञानचक्षु की पलकें खुलते ही काम जलकर भस्म हो जाता है। यह विवेक अपना ऋषित्व स्थिर रखते हुए दुष्टता को उन्मुक्त रूप से नहीं विचरने देता है। अंतत: उसका मद-मर्दन करके ही रहता है। वस्तुत: यह तृतीय नेत्र सृष्टा ने प्रत्येक व्यक्ति को दिया है। यदि यह तीसरा नेत्र खुल जाए, तो सामान्य बीज रूपी मनुष्य की संभावनाएं वट वृक्ष का आकार ले सकती हैं। शिव-सा शायद ही कोई संपन्न हो, पर वे संपन्नता के किसी भी साधन का अपने लिए प्रयोग नहींकरते हैं। हलाहल (विष) को गले में रोकने से वह नीलकंठ हो गए हैं। विश्व कल्याण के लिए उन्होंने विपरीत परिस्थितियों को तो स्वीकार किया, पर व्यक्तित्व पर उसका प्रभाव नहीं पड़ने दिया।
शिव का एक नाम पशुपति भी है। पशुत्व की परिधि में आने वाली दुर्भावनाओं और दुष्प्रवृत्तियों का नियंत्रण करना पशुपति का काम है। नर-पशु के रूप में रह रहा जीव जब कल्याणकर्ता शिव की शरण में आ जाता है, तो सहज ही उसकी पशुता का निराकरण हो जाता है। शिव परिवार में मूषक (गणेश का वाहन) का शत्रु सर्प, सांप का दुश्मन मोर (कार्तिकेय का वाहन) और मोर एवं बैल (शिव का वाहन) का शत्रु शेर (मां पार्वती का वाहन) शामिल है। इसके बावजूद परिवार में सामंजस्य बना रहता है। शिव परिवार विपरीत परिस्थितियों में सामंजस्य बनाए रखने का अनुपम संदेश भी देता है। इसलिये शिव कल्याणकारी है और शिव से ही श्रृष्टि का आरम्भ और अन्त भी है।