धर्म

मां शक्ति का दूसरा स्वरुपः देवी ब्रह्मचारिणी

Maa brmhacharini मां शक्ति का दूसरा स्वरुपः देवी ब्रह्मचारिणी

मां दुर्गा की नवशक्ति का दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है। भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। इस कठिन तपस्या के कारण इस देवी को तपश्चारिणी अर्थात् ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया। यहां ब्रह्म का अर्थ तपस्या से है। मां दुर्गा का यह स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनंत फल देने वाला है। इनकी उपासना से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि होती है। दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू। देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।। ब्रह्मचारिणी का अर्थ तप की चारिणी यानी तप का आचरण करने वाली। देवी का यह रूप पूर्ण ज्योतिर्मय और अत्यंत भव्य है। इस देवी के दाएं हाथ में जप की माला है और बाएं हाथ में यह कमण्डल धारण किए हैं।

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स्तोत्र पाठ:-
तपश्चारिणी त्वंहि तापत्रय निवारणीम्।
ब्रह्मरूपधरा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
शंकरप्रिया त्वंहि भुक्ति-मुक्ति दायिनी।
शान्तिदा ज्ञानदा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥

मां का यह स्वरूप समस्त शक्तियों को एकाग्र कर बुद्धि विवेक व धैर्य के साथ सफलता की राह पर बढने की सीख देता है। ब्रह्मचारिणी मां दुर्गा को द्वितीय शक्ति स्वरूप है। मां स्वेत वस्त्र पहने दाएं हाथ में अष्टदल की माला और बांए हाथ में कमण्डल लिए हुए सुशोभित है। पैराणिक ग्रंथों के अनुसार यह हिमालय की पुत्री थीं तथा नादर के उपदेश के बाद यह भगवान को पति के रूप में पाने के लिए इन्होंने कठोर तप किया। जिस कारण इनका नाम ब्रह्मचारिणी पडा। इन्होंने भगवान शिव को पाने के लिए 1000 वषों तक सिर्फ फल खाकर ही रहीं तथा अगले 3000 वर्ष की तपस्या सिर्फ पेडों से गिरी पत्तियां खाकर की। इसी कडी तपस्या के कारण उन्हें ब्रह्मचारिणी व तपस्चारिणी कहा गया है। कठोर तप के बाद इनका विवाद भगवान शिव से हुआ। माता सदैव आनन्द मयी रहती हैं।

 

दुर्गा पूजा के दूसरे दिन देवी के इसी स्वरूप की उपासना की जाती है। इस देवी की कथा का सार यह है कि जीवन के कठिन संघर्षों में भी मन विचलित नहीं होना चाहिए। मां ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से सर्व सिद्धि प्राप्त होती है। मां दुर्गा का यह दूसरा स्वरूप भक्तों को अनन्त फल देने वाला है। इनकी उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार व संयम की वृद्धि होती है। सर्वत्र सिद्धि और विजय प्राप्त होती है। दुर्गा पूजा के दूसरे दिन इन्हीं के स्वरूप की उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन स्वाधिष्ठान चक्र में होता है।

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