September 8, 2024 6:09 am
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SC ने व्यभिचार से संबंधित दंडात्मक प्रावधान को असंवैधानिक करार दिया

sc 3 SC ने व्यभिचार से संबंधित दंडात्मक प्रावधान को असंवैधानिक करार दिया

सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से व्यभिचार से संबंधित दंडात्मक प्रावधान को असंवैधानिक करार देते हुए उसे मनमाना और महिलाओं की व्यक्तिकता को ठेस पहुंचाने वाला बताते हुए रद्द कर दिया है।

SC ने व्यभिचार से संबंधित दंडात्मक प्रावधान को असंवैधानिक करार दिया
SC ने व्यभिचार से संबंधित दंडात्मक प्रावधान को असंवैधानिक करार दिया

इसे भी पढ़ेःचीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने क्या कहा?

उक्त मामलें में सुनवाई से संबंधित बातें-

मालूम हो कि 10 अक्टूबर, 2017 को केरल के एनआरआई जोसेफ शाइन ने न्यायालय में याचिका दायर कर आईपीसी की धारा 497 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी थी। याचिका में शाइन ने कहा कि पहली नजर में धारा 497 असंवैधानिक है क्योंकि वह पुरूषों और महिलाओं में भेदभाव करता है और संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 का उल्लंघन करता है।

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8 दिसंबर, 2017 को न्यायालय ने व्यभिचार से जुड़े दंडात्मक प्रावधानों की संवैधानिक वैधता की समीक्षा करने पर सहमति दी थी। पांच जनवरी, 2018 को  न्यायालय ने व्यभिचार से जुड़े दंडात्मक कानून की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका को पांच सदस्यीय संविधान पीठ के पास भेजा है ।

बता दें कि 11 जुलाई, 2018 को केन्द्र ने न्यायालय से कहा कि धारा 497 को निरस्त करने से वैवाहित संस्था नष्ट हो जाएगी।एक अगस्त, 2018 को संविधान पीठ ने मामले की सुनवाई शुरू की। 2 अगस्त, 2018 को न्यायालय ने कहा कि वैवाहिक पवित्रता एक मुद्दा है, लेकिन व्यभिचार के लिए दंडात्मक प्रावधान आखीरी में संविधान प्रदत्त समानता के अधिकार का उल्लंघन है।

8 अगस्त, 2018 को  केन्द्र ने व्यभिचार के संबंध में दंडात्मक कानून बनाए रखने का समर्थन किया, कहा कि यह सामाजिक तौर पर गलत है और इससे जीवनसाथी, बच्चे और परिवार मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित होते हैं। 8 अगस्त, 2018  को न्यायालय ने छह दिन तक चली सुनवाई के बाद व्यभिचार संबंधी दंडात्मक प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा ।

मालूम हो कि 27 सितंबर, 2018 को न्यायालय की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने भारतीय दंड संहिता की धारा 497 को असंवैधानिक बताते हुए इसमें दंडात्मक प्रावधान खत्म कर दिया है।

महेश कुमार यादव

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