नई दिल्ली। भरा नहीं जो भावों से बहती जिसमें रसधार नहीं वो ह्रदय नहीं पत्थर है जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ लेकिन आजाद देश के सामने कई संकट थे। पहले विकास की राह पर देश को लाना और दूसरा छोटी-बड़ी रियासतों को भारतीय गणराज्य का हिस्सा बनाना।
क्या का रियासतों के विलय का इतिहास
देश जब 1947 को आजाद हुआ तो भारत और पाकिस्तान के स्वरूप में देश को अंग्रेजों ने आजादी दी थी। मुल्क के दो टुकड़े हुए थे। इसके साथ ही देश को अंग्रेजों ने आजाद करते हुए यहां मौजूद रियासतों को अपनी इच्छा अनुसार भारत और पाकिस्तान में विलय होने की छूट दे दी थी। इसके साथ ही उन्हें यह भी छूट दी वे चाहें तो स्वतंत्र तौर पर शासन कर सकते हैं। जिस समय देश आजाद हुआ उस समय 562 रियासतें और रजवाडे मौजूद थे। इन रियासतों और रजवाड़ों पर राजा और नवाब अंग्रेजी शासन के अधीन राज्य करते थे।
जिस समय देश आजाद हुआ उस समय इन देसी रियासतों को भारतीय गणराज्य में विलय कराने की जिम्मेदारी सबसे जटिल और कठिन थी। इसके लिए इस जिम्मेदारी को तत्कालीन गृहमंत्री सरदार पटेल को सौंपी गई थी। इस नये भारत का गठन भी सरदार पटेल ने बखूबी किया जिसकी तुलना जर्मनी के शासक ओटो वान बिस्मार्क से की जाती है जिसने जर्मनी का एकीकरण किया था। आजादी के पहले ही इसके एकीकरण की कमान सरदार पटेल के हाथ में आ गई थी। 6 मई 1947 को सरदार पटेल को इसकी कमान सौंपी गई थी। इस मामले में सरदार पटेल ने महात्मा गांधी की सलाह पर तत्कालीन वरिष्ठ नौकरशाह वीपी मेनन को गृहमंत्रालय का मुख्य सचिव बनाकर इन देसी रियासतों को भारत में विलय के लिए दूत बनाकर भेजना शुरू कर दिया। इस पूरे प्रकरण में सरदार पटेल ने ताकत के बजाए कूटनीति और बातचीत का सहारा लिया।
विलय को लेकर सरदार पटेल का मसौदा
देसी रियासतें जल्दी विलय के लिए तैयार नहीं होने वाली थीं। इसलिए सरदार ने इन रियासतों के वशंजों को प्रिवी पर्सेज के जरिए के नियमित आर्थिक मदद देने का प्रस्ताव देते हुए उन्हें देशभक्ति की भावना से ये फैसला लेने को कहा साथ ही 15 अगस्त 1947 तक भारत में शामिल होने की समय सीमा तय कर दी। इसके साथ उन्होने साफ कर दिया था कि अपने इस अभियान को पूरा करने के लिए वो हर तरह के साम-दाम-दंड-भेद को अपनाएंगे। यही पटेल की रणनीति और कूटनीतिक चालों का असर था, कि धीरे-धीरे रजवाडों ने भारत में शामिल होना शुरू कर दिया था।
आजादी के वक्त 3 तीन बड़ी रियासतें
जूनागढ़, हैदराबाद और जम्मू-कश्मीर के विलय को महत्वपूर्ण अभियान
तीन रियासतें जूनागढ़, हैदराबाद और जम्मू-कश्मीर ने इस विलय अभियान से अपने आपको अलग रखा था। अंग्रेजों ने देश के दो टुकड़े कर दिए थे ऐसे वक्त में इन रियासतों का विलय ना करना भारत के लिए बड़ा संकट था। इन रियासतों को केवल ताकत से ही मिलाया जा सकता था। ऐसे विषम समय में सरदार पटेल ही थे जिन्होने अपनी कूटनीतिक चालों के साथ साम-दाम-दंड-भेद की नीति अपनाकर इन रियासतों को भारतीय गणराज्य का हिस्सा बनाया। क्योंकि हालत देश के बहुत खराब थे। बंटवारे का दंश देश झेल रहा था। ऐसे में देश सांप्रदायिकता की आग में जल रहा था। इस मौके का फायदा उठाते हुए जूनागढ़ रियासत के नवाब ने पाकिस्तान में शामिल होने का फैसला ले लिया था। वहीं हैदराबाद के निजाम ने आजाद रहने का फैसला ले लिया था। जम्मू कश्मीर के महाराजा हरि सिंह कोई फैसला नहीं ले पा रहे थे। आबादी के हिसाब से जूनागढ़ और हैदराबाद में हिन्दू आबादी बहुसंख्यक थी तो जम्मू कश्मीर में हिन्दू अल्पसंख्क थे । ऐसे हालत में किसी तरह का फैसला देश में सांप्रदायिक माहौल बिगाड़ सकता था।
जम्मू-कश्मीर का महत्वपूर्ण विलय
जम्मू कश्मीर के मामले में पाकिस्तान ने अपना उतावलापन दिखाते हुए कबायलियों के भेष में पाकिस्तानी सेना के जरिए कब्जा करने के लिए आक्रमण कर दिया। क्योंकि उसे मामूल हो चुका था कि वहां का हिन्दू राजा भारत में विलय कर सकता है। लेकिन 25 अक्टूबर को राजा हरि सिंह ने भारत में विलय प्रस्ताव को स्वीकार करने का फैसला ले लिया। इसके बाद भारतीय सेना वहां रक्षा के लिए तैनात हो गई। ये सरदार पटेल की सबसे बड़ी ऐतिहासिक जीत हुई थी।
जूनागढ़ रियासत को लेकर सरदार पटेल का कदम
आजादी के बाद तीन रियासतों में जिन्होने ने विलय नहीं किया था उनमें जूनागढ़ भी थी ये रियासत चारों तरफ से भारत की सीमाओं से घिरी थी। लेकिन इस रियासत के नवाब का पाकिस्तान प्रेम जग गया था। उसने पाकिस्तान में विलय करने का फरमान सुना दिया था। जिसके बाद वहां पर मौजूद प्रजा ने भारत सरकार से इस मामले में हस्तक्षेप करने की गुहार लगाई। क्योंकि वहां पर हिन्दू प्रजा पाकिस्तान के साथ नहीं जाना चाहती थी। इसके बाद सरदार पटेल ने तुरंत कार्रवाई जूनागढ़ को तेल-कोयले की सप्लाई, हवाई-डाक संपर्क रोक कर आर्थिक घेरेबंदी कर दी। प्रजा नवाब के खिलाफ विद्रोह पर उतर आई। इसके बाद नवाब ने हालात खराब होते देख तुरंत परिवार के साथ पाकिस्तान का रूख कर लिया। इसके बाद 7 नवम्बर को जूनागढ़ औपचारिक तौर पर भारत का हिस्सा बन गया।
हैदराबाद विलय को लेकर दिखी पटेल की दृढ़ इच्छा शक्ति
हैदराबाद के निजाम ने अपने आपको स्वतंत्र रियासत के तौर पर रखने की इच्छा जताई थी। हैदराबाद का निजाम उस्मान अली खान विलय ना करने पर अड़ा था। उसके साथ ही एक कासिम रजवी नाम का शख्स भाड़े की सेना लेकर हैदराबाद की जनता पर अत्याचार कर रहा था। हैदराबाद में 87 फीसदी आबादी हिन्दू थी। जनता ने निजाम और उसके सहयोगियों के अत्याचार से आजिज आकर भारत सरकार से बचाने की गुहार की ऐसी हालत में 13 सितंबर 1948 को सरदार पटेल ने भारतीय फौज को हैदराबाद पर चढ़ाई करने का आदेश दे दिया। इस ऑपरेशन को भारतीय सेना ने ऑपरेशन पोलो का नाम दिया 2 दिन में ही सेना ने हैदराबाद पर कब्जा कर लिया। इसके बाद सरदार पटेल ने अपनी कूटनीति से निजाम को अपने साथ मिलकर विलय करा पाकिस्तान की चाल को नाकाम कर दिया।
इस तरह से देश 15 अगस्त 1947 को आजाद तो हुआ लेकिन इसे खड़ा करने का काम सरदार पटेल जैसे महापुरूष ने बखूबी किया था। इसके चलते देश को एक विस्तृत स्वरूप से खड़ा किया जा सका। आज आजादी के 70 साल पूरे हो रहे हैं। इस 70 साल के आजाद भारत को एकता के सूत्र में गठने वाले को याद कर हम उसे सच्ची श्रद्धांजली दे रहे हैं।
अजस्रपीयूष