नई दिल्ली। रोहिंग्या मुद्दे को लेकर बांग्लादेश के विदेेश सचिव ने अपने भारतीय समकक्ष एस जयशंकर और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से मुलाकात की। मुलाकात के दौरान हक ने अपने भारतीय समकक्षो के सामने इस मुद्दे को लेकर गहन चर्चा की और बांग्लादेश का पक्ष रखा। मुलकात के बाद हक ने कहा कि रखाइन प्रांत में हिंसा एक जातीय सफाया है। उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को इस बात से परिचित करा दिया गया है कि म्यांमार रोहिंग्या मुस्लिमों के ‘अधिकारों को छीन’ रहा है।
उन्होंने कहा कि इस मामले में बांग्लादेश की स्थिति बिल्कुल साफ है कि ये समस्या म्यांमार में उत्पन्न हुई है इसलिए हल भी वहीं पर है। ढाका चाहता है कि शरणार्थी जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्दी वापस चले जाएं। रोहिंग्या मुस्लिमों को सुरक्षा के लिए खतरा बताने संबंधी भारतीय रुख के बारे में पूछे जाने पर शाहीदुल हक ने कहा कि जब भी बड़े पैमाने पर लोगों की आवाजाही होती है तो कट्टरता की संभावनाएं बढ़ जाती हैं, लेकिन बांग्लादेश फिलहाल स्थिति पर नियंत्रण रखने में सक्षम है।
उन्होंने कहा, अभी यह आबादी पूरी तरह तटस्थ है। वे सभी वापस जाना चाहते हैं। यह सरकार की जिम्मादारी है कि वह उन्हें कट्टरपंथ की ओर बढ़ने से रोके। तथ्य यह है कि यह एक मानवीय मसला है जिसमें महिलाएं और बच्चे शामिल हैं। उन्हें मदद की जरूरत है।
40 हजार से ज्यादा रोहिंग्या मुस्लिमों को वापस भेजने के भारत के प्रस्ताव पर हालांकि उन्होंने कोई टिप्पणी करने से इन्कार कर दिया। लेकिन, उन्होंने यह जरूर कहा कि मुश्किल वक्त में भारत ने हमेशा बांग्लादेश का साथ दिया है फिर वह चाहे 1971 का समय रहा हो अथवा बाद का।
म्यांमार के हिंसाग्रस्त इलाकों में हिंदुओं की सामूहिक कब्रें मिलने के सवाल पर हक ने कहा कि वहां जो भी लोग जातीय सफाये में जुटे हैं वे वास्तव में हिंदू या मुस्लिमों के बीच अंतर नहीं करते। वे पूरे क्षेत्र को साफ करके फ्री जोन बनाना चाहते हैं।