नई दिल्ली। भारत की भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की जितनी तारीफ की जाए उतनी कम है। साल 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में अपनी नीतियों से पाकिस्तान को धूल चटाने वाली और बांग्लादेश को एक अलग राष्ट्र के रूप में स्थापित करने वाली इंदिरा गांधी को उस समय विपक्ष के नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने मां दुर्गा का स्वरूप बताया था। उन्हें दुर्गा को स्वरूप कहा भी क्यों न जाए साल 1971 के युद्ध में रूस को छोड़कर पूरी दुनिया भारत के खिलाफ थी। इस खिलाफत में सबसे आगे था अमेरिका, जिसने कहा था कि अगर भारत पाकिस्तान पर हमला करता है तो उसे हमसे भी युद्ध करना होगा। इंदिरा गांधी ने आओ देखा न ताओ और पाकिस्तान के साथ अमेरिका को भी युद्ध की चुनौती दे दी।
इंदिरा गांधी के इस व्यक्तिव को देखते हुए रूस भारत के समर्थन में उतर आया और उसने अमेरिका को युद्ध की खुली चुनौती दे डाली। देश का सिर गर्व से ऊंचा करने वाली बहुमुखी प्रतिभा की धनी थी हमारी पहली महिला प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी। आज इनकी 33 वीं पुणतीथी है, इन्हें 31 अक्टूबर 1984 की सुबह इनके खुद के सिख अंगरक्षकों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश भर में सिखों के खिलाफ दंगे भड़क उठे और इसका केंद्र बना दिल्ली। दिल्ली और देश भर में बड़े पैमाने पर सिखों की हत्या की गई। तीन दिन तक चले इस खूनी खेल में देशभर में 8000 से भी ज्यादा सिखों की हत्या की गई, जिसमें अकेले 3000 सिखों की हत्या दिल्ली में कर दी गई।
इंदिरा गांधी की हत्या की वजह बना ऑपरेशन ब्लू स्टार
दरअसल भारत -पाकिस्तान के विभाजन के समय हिंदुओं को हिंदुस्तान मिल गया और मुसलमानों को पाकिस्तान, लेकिन इन दोनों के बीच में दो फीसदी सिख आबादी पिस कर रह गई। जिन्होंने इन दंगों में अपना सब कुछ खोया और अंत में जाकर दोनों ही देशों में इन्हें अल्पसंख्यक की संज्ञा दे दी गई। इतना सब खोने के बाद अल्पसंख्यक का दर्जा सिखों को नागवार गुजरा और उन्होंने साल 1973 और 1978 में आनंदपुर साहिब प्रस्ताव में भारत सरकार से ये मांग की कि पंजाबी भाषी क्षेत्रों को पंजाब में शामिल किया जाए और केंद्र सरकार के पास केवल विदेश नीति, संचार और मुद्रा का अधिकार हो।
इन अधिकारों को लेकर पंजाब में साल 1978 में अकालियों और निरंकारियों के बीच में हिंसक झड़प हुई जिसमें 13 लोग मारे गए, इन्हीं झड़पों के दौरान सबसे आगे रहा जनरैल सिंह भिंडरवाला। उसने इस नीति को ही पलट दिया और इसे धर्म, मर्यादा और क्षेत्र का नाम देते हुए सिखों के लिए एक अलग राष्ट्र ”खालिस्तान” की मांग रख दी। भिंडरवाला पंजाब में भड़काऊ भाषण देने लगा, उसके इन भाषणों को सुनकर कई लोग उसके समर्थन में उतर आए। धीरे-धीरे इस विरोध ने हिंसक रूप ले लिया। पंजाब में हिंसा की शुरुआत तब हुई जब साल 1981 में पंजाब केसरी के संपादक लाला जगत नरायण की हत्या कर दी गई।
इस हत्या के बाद देखते ही देखते पंजाब में हिंसा का दौर शुरू हो गया और पंजाब के कई इलाकों में हिंसक झपड़े हुई। वहीं भिंडरवाला को जनसमर्थन मिलता देख अकाली नेता भी उसके समर्थन में बयान बाजी करने लगे। पंजाब धीरे -धीरे हिंसा की लपटों में जलने लगा, जब-तक सरकार को इसकी भनक लगी तब तक काफी देर हो चुकी थी। अलग राष्ट्र की मांग के चलते पंजाब में हिंदुओं पर हमले शुरू हो गए। पंजाब रोड़वेज की बस में जालंधर के पास कई हिंंदुओं की हत्या कर दी गई, इसके विरोध में हरियाणा में सिखों के खिलाफ हिंसा भड़क उठी और राज्य में 69 सिखों की हत्या कर दी गई। हिंसा को बढ़ते देख इंदिरा गांधी ने पंजाब का शासन अपने हाथों में ले लिया और उसे आतंकवाद से मुक्त करने के लिए ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ चलाने के निर्देश दे दिए।
क्या था ऑपरेशन ब्लू स्टार
ऑपरेशन ब्लू स्टार भारतीय सेना द्वारा 3 से 6 जून 1984 के बीच अमृतसर के हरमिंदर साहिब परिसर को खालिस्तान समर्थक भिंडरवाला और उसके समर्थकों से मुक्त कराने के लिए चलाया गया था। इस दौरान भारतीय सेना ने खालिस्तानी आतंकवादियों को मौत के घाट उतराने के लिए हरमिंदर साहिब पर हमला कर दिया, जिसमें हरमिंदर साहिब को बहुत नुकसान पहुंचा था। इस दौरान आतंकवादियों के साथ-साथ कई आम नागरिक भी मारे गए थे, लेकिन हरमिंदर साहिब को चरमपंथियों से पूरी तरह मुक्त करवा लिया गया। इस कार्रवाई में 83 सैनिक और 438 चरमपंथी व आम नागरिक मारे गए।
हरमिंदर साहिब को हुए इतने बड़े पैमाने पर नुकसान के बाद सिखों का रोष सरकार के खिलाफ खुलकर सामने आया। जाने-माने सिखों ने अपने अवॉर्ड सरकार को वापस कर दिए और कई बड़े पदों पर काबिज सिखों ने अपने पदों से इस्तीफा देना शुरू कर दिया। इसी बीच 31 अक्टूबर 1984 का वो दिन आया जब इंदिरा गांधी के दो सिख अंगरक्षकों ने उनकी सुबह के समय ताबतोड़ गोली मारकर हत्या कर दी और देश को नई पहचान देने वाली हमारी प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी इस दुनिया से रूकस्त हो गई।
इंदिरा की हत्या के बाद भड़के दंगे
इंदिरा गांधी की हत्या के बाद बड़े पैमाने पर देश भर में सिखों के खिलाफ हिंसा शुरू हो गई। देश के कई हिसों में तीन दिन तक चले इस खूनी खेल में 8000 से भी ज्यादा सिखों की हत्या कर दी गई। सरकारी आकड़ों के मुताबिक अकेले दिल्ली में ही 3000 सिखों की हत्या कर दी गई। दिल्ली की सड़के खून से लाल हो गई और जगह-जगह पर गुरुद्वारों पर हमले हुए और सिखों के घरों को लूटा गया। 15 हजार से भी ज्यादा महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया। इन दंगों को भड़काने वाले आज भी खुलेआम घूम रहे हैं और अपना सबकुछ इसमें खोने वाले लोग इतने साल बीत जाने के बाद भी इंसाफ का इंतजार कर रहे हैं। कई सरकार बदली, कई नेताओं ने इन दंगों को अपना राजनीतिक मुद्दा बनाया, लेकिन आजतक भी जुल्मो-सितम के शिकार हुए ये परिवार इंसाफ की मांग कर रहे हैं।