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अध्यादेशों को फिर से जारी करना संविधान से धोखाः सुप्रीम कोर्ट

Molestation case the Supreme Court upheld the conviction of former Haryana DGP अध्यादेशों को फिर से जारी करना संविधान से धोखाः सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अध्यादेशों को फिर से जारी करना संविधान से धोखा और लोकतांत्रिक विधायी प्रक्रिया को नुकसान पहुंचाना है, विशेष तौर पर जब सरकार अध्यादेशों को विधानमंडल के समक्ष पेश करने से लगातार परहेज करे। सात न्यायाधीशों वाली संवैधानिक पीठ ने बहुमत से सोमवार को कहा कि अध्यादेश फिर से जारी करना संवैधानिक रूप से अस्वीकार्य है और यह संवैधानिक योजना को नुकसान पहुंचाने वाला है जिसके तहत अध्यादेश बनाने की सीमित शक्ति राष्ट्रपति और राज्यपालों को दी गई है।

Supreme Court अध्यादेशों को फिर से जारी करना संविधान से धोखाः सुप्रीम कोर्ट

न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड ने न्यायमूर्ति एसए बोबडे, न्यायमूर्ति एके गोयल, न्यायमूर्ति यूयू ललित और न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की ओर से बहुमत का फैसला लिखते हुए कहा, किसी अध्यादेश को विधानमंडल के समक्ष पेश करने की जरूरत का अनुपालन करने में विफलता एक गंभीर संवैधानिक उल्लंघन और संवैधानिक प्रक्रिया का दुरूपयोग है। उन्होंने कहा, अध्यादेशों को फिर से जारी करना संविधान से धोखा और लोकतांत्रिक विधायी प्रक्रियाओं को नुकसान पहुंचाने वाला है।

एकमात्र असहमति वाले न्यायाधीश न्यायमूर्ति एमबी लोकुर का विचार था कि किसी राज्य के राज्यपाल द्वारा किसी अध्यादेश को फिर से जारी करना अपने आप में संविधान के साथ कोई धोखा नहीं है। यह फैसला बिहार सरकार द्वारा 1989 से 1992 के बीच राज्य सरकार द्वारा 429 निजी संस्कृत स्कूलों को अधिकार में लेने के लिए जारी श्रृंखलाबद्ध अध्यादेशों के खिलाफ दायर एक अर्जी पर आया।

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