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राम मंदिर औरंगजेब के शासनकाल में ढहा था

Ram Mandir राम मंदिर औरंगजेब के शासनकाल में ढहा था

पटना। अयोध्या के राम जन्मभूमि मंदिर को बाबर के सेनापति मीर बाकी ने नहीं ढहाया था, बल्कि इसे औरंगजेब के शासनकाल में ढहाया गया था। पूर्व भारतीय पुलिस सेवा अधिकारी (आईपीएस) किशोर कुणाल ने अपनी किताब ‘अयोध्या रिविजिटेड’ में इसका खुलासा किया है।

Ram Mandir

कुणाल ने आईएएनएस को दिए साक्षात्कार में कहा कि बाबर की भूमिका के बारे में यह धारणा फ्रांसिस बुकानन की वजह से बनी है, जिन्होंने 1813-1814 के दौरान अयोध्या का सर्वेक्षण किया था। वह मस्जिद के एक शिलालेख से भ्रमित हो गए थे, जिसमें बाकी का जिक्र था।

गौरतलब है कि कुणाल 1990 के दशक में केंद्रीय गृह मंत्रालय के तहत विशेष ड्यटी पर तैनात थे।

कुणाल ने कहा, “अयोध्या में किसी भी मंदिर को ढहाने और वहां किसी भी मस्जिद के निर्माण में बाबर की कोई भूमिका नहीं थी। बाबर को पिछले 200 वर्षो से उस कार्य के लिए बदनाम किया जा रहा है, जिससे उसका कोई ताल्लुक नहीं था। यह एक उदार मुगल शासक के प्रति अन्याय है।”

कुणाल के मुताबिक, इस मंदिर को औरंगजेब के शासनकाल में अवध के गवर्नर फेदाई खान ने 1660 में ढहाया था। मंदिर को 1528 में नहीं ढहाया गया जैसा कि दावा किया जाता रहा है।

कुणाल ने जोर देकर कहा कि तथाकथित बाबरी मस्जिद में तीन गुंबद थे जो औरंगजेब के शासनकाल के दौरान निर्मित अन्य मस्जिदों से मिलते-जुलते हैं।

कुणाल ने कहा, “फ्रांसिस बुकानन ने 1813-1814 में अयोध्या का सर्वेक्षण किया था। वह मस्जिद के शिलालेख से भ्रमित हो गए, जिसकी सही तरीके से जांच भी नहीं की गई थी। लोगों को पता था कि औरंगजेब ने राम मंदिर को ढहाया, लेकिन बुकानन ने इस मिथ्या शिलालेख से भ्रमित होकर बाबर को बदनाम किया।”

कुणाल ने कहा कि माना जाता है कि बाबरी मस्जिद का निर्माण 1528 में हुआ और इसके भीतर इस शिलालेख को सदियों बाद स्थापित किया गया।

कुणाल के मुताबिक, इस शिलालेख में जिस मीर बाकी का उल्लेख है, वह ‘बाबरनामा’ में जिस बाकी का जिक्र है, उससे अलग है। बाबर तो कभी अयोध्या आया ही नहीं।

कुणाल कहते हैं कि मुगल शासनकाल के दौरान अयोध्या के मंदिर कभी प्रभावित नहीं हुए, जब तक कि औरंगजेब गद्दी पर न बैठा। औरंगजेब के शासनकाल में ही स्थितियां बदल गईं।

वर्ष 1838 में मार्टिन की किताब ‘हिस्ट्री टोपोग्राफी एन्टीकिटिज ऑफ ईस्टर्न इंडिया’ में अयोध्या की रिपोर्ट प्रकाशित होने के बाद विद्वानों ने यह समझना शुरू कर दिया कि वहां मस्जिद का निर्माण बाबर ने किया था।

कुणाल ने बताया कि 1528 में मस्जिद के निर्माण के बाद 240 से अधिक वर्षो तक बाबरी मस्जिद के संदर्भ में कोई भी उल्लेख नहीं पाया गया। इसका उल्लेख पहली बार 1768 में जीसुइट पादरी के यात्रा वृत्तांत में किया गया था।

कुणाल ने कहा, “मैंने अपनी किताब में अयोध्या पर थॉमस हरबर्ट जैसे विदेशी यात्रियों और 1631 में जोन्स डि लिएट के वृत्तांतों को पेश किया है। दोनों ने वहां राम मंदिर होने का उल्लेख किया है।”

कुणाल ने कहा, “मैंने एक सशक्त साक्ष्य पेश किया है, जिससे सिद्ध होता है कि भगवान राम की जन्मस्थली पर मंदिर था और उसके भीतर मूर्ति थी, जैसा कि रूद्र यामाला के अध्याय अयोध्या महात्म्य’ में वर्णित है।”

कुणाल के मुताबिक, विश्व हिंदू परिषद (विहिप) राम जन्मभूमि के बारे में ‘अयोध्या महात्म्य’ और ‘स्कंद पुराण’ के अलावा कोई और दस्तावेज पेश करने में असफल रही है, लेकिन मैंने चार लेखों का उल्लेख किया, जिससे सिद्ध होता है कि अयोध्या भगवान राम की जन्मस्थली है।

उन्होंने आगे कहा कि विहिप एक काल्पनिक किताब ‘सहीफर-ए-चिहल-नासैह बहादुर शाही’ को सही मानती है, जो पूरी तरह से अनुपयुक्त है।

(इमरान खान, आईएएनएस, लेखक के विचार स्वतंत्र हैं)

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