वाराणसी। श्रावण माह में काशी पुराधिपति बाबा विश्वनाथ के दरबार में वीवीआईपी कल्चर से आम श्रद्धालुओं में काफी आक्रोश है। इस मास में रोजाना भोर से देर रात तक बाबा भोले के दर्शन पूजन के लिए शिवभक्तों की भीड़ जुटी रहती है।
ऐसे में आम शिवभक्त हों या कांवड़िये या फिर वीवीआईपी सभी बाबा का जल्द से जल्द दर्शन को आतुर रहते हैं।
जहां दरबार में पहुंचने के लिए आम श्रद्धालुओं को लम्बी कष्टदायक दूरी और कतार में रह कर धक्का-मुक्की व पुलिसिया दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता है। वहीं वीवीआईपी, वीआईपी और पुलिस के अफसरों और उनके परिजनों को सारे नियम कानून तोड़ बाबा दरबार में पिछले दरवाजे के रास्ते आराम से दर्शन-पूजन का मौका मिलता है। ऐसी मिलने वाली कथित सुविधा के बावजूद कुछ पुलिस अफसर उनके परिजनों के साथ सूबे और अन्य प्रान्तों के मंत्री अफसर कुछ कदम पैदल चलना भी हेठी समझते हैं।
वे सीधे अपने वाहनों के काफिले में सीधे ज्ञानवापी क्रॉसिंग में पहुंचते है। आराम से वाहन खड़ाकर अंदर जाते हैं। इसके बाद उनके चालक और अंगरक्षकों की मनमानी चलती है। लगभग आधा घंटा वहीं गाड़ी को आगे पीछे कर बीच सड़क पार्क कराने के बाद अपने आका और उनके परिजनों का इन्तजार करते हैं।
इस दौरान वहां पहले से ही मौजूद ज्ञानवापी सुरक्षा में तैनात पुलिस कर्मियों के बड़े छोटे वाहन, क्षेत्रीय दुकानदारों, ग्राहकों के वाहन कोढ़ में खाज का काम करते हैं। संकरे रास्ते में फंसे लोग, शवयात्री, छात्र, मरीज भुनभुनाते हुए आने जाने के लिए मजबूर हैं।
शनिवार को सुबह लगभग आठ बजे यह नजारा फिर दिखा। बाबा दरबार में दर्शन पूजन के लिए आए वीवीआईपी के वाहनों से लगे जाम से झुंझलाये सप्तसागर बुलानाला के बाइक सवार बुर्जुग रामसूरत यादव बनारसी अंदाज में गरियाते हुए बोल उठे। वीवीआईपी हैं तो क्या बाबा के कपरा पर चढ़ जइहें। आसपास के लोगों ने उन्हें समझा बुझा कर गतंव्य की ओर रवाना किया।
इस दौरान वहां मौजूद चन्दौली के चहनियां के कांवड़ियां अमरदेव, चन्दू, गूड्डू, पुल्लु बाबा के भक्ति में गा रहे थे। हाथी न घोड़ा न कवनो सवारी, पैदल ही अइबो तोरे दुआरी हे भोलेनाथ। गाने का भाव समझ लोग और यह संवाददाता वीवीआईपी कथित अफसरों और उनके परिजनों को तिरस्कृत भाव से देख अपने गतंव्य की ओर बढ़ गये।