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लोगों को पसंद नहीं आया ‘लाली की शादी का लड्डू’

LAALI लोगों को पसंद नहीं आया 'लाली की शादी का लड्डू'

मुंबई। मनीष हरिशंकर के निर्देशन में बनी फिल्म ‘लाली की शादी में लड्डू दीवाना’ का सबजेक्ट दिलचस्प था। शुरुआत एक लव स्टोरी से होते हुए फिल्म पारिवारिक ताना-बना और साथ में शाही परिवार के साथ जुड़ गई। फिल्म का प्लॉट अच्छा होने के बाद भी ये अच्छी फिल्म नहीं बन पाई। ऐसा होने के कई सारे कारण हैं।

LAALI लोगों को पसंद नहीं आया 'लाली की शादी का लड्डू'

लड्डू (विवान शाह) वडोदरा, अपने पिता (दर्शन जरीवाला) की साइकिल की दुकान पर जिंदगी खराब नहीं करना चाहता। अमीर बनने के लिए वो मुंबई चला आता है। यहां उसकी मुलाकात लाली (अक्षरा हसन) से होती है। थोड़े से टकराव के बाद दोनों की लव स्टोरी शुरू होती है, तो लाली शादी से पहले ही प्रगनेंट हो जाती हैं और अमीर बनने की लड्डू की हसरतों से दोनों के बीच टकराव होता है, जिसमें दोनों के परिवार भी आ जाते हैं। घटनाएं इस तरह से घटती हैं कि लाली को लड्डू का परिवार अपनी बेटी मान लेता है और लड्डू को लाली के माता-पिता अपना बेटा मान लेते हैं। इसमें एक शाही परिवार की कहानी भी जुड़ती है। एक शाही परिवार के राजकुमार (गुरमीत चौधरी) की शादी किसी प्रेगनेंट लड़की से ही हो सकती है, तो मामला लाली पर आ जाता है। लड्डू को भी अपनी गलती का एहसास होता है। दोनों परिवार भी कोशिश करते हैं। क्लाइमैक्स में शाही राजकुमार कुर्बानी देकर लड्डू और लाली की दुनिया फिर से बसा लेते हैं।

मनीष हरिशंकर ने पहली बार हिन्दी फिल्म बनाई, लेकिन उनकी अनुभवहीनता फिल्म पर भारी पड़ी। वे एक साथ कई ट्रैक को लेर चलने में अनाड़ी साबित हुए। फिल्म दिलचस्प अंदाज में शुरू होकर जल्दी ही अपनी लय खोती चली जाती है और मनीष हरिशंकर किरदारों की उलझन का शिकार होकर फिल्म पर नियंत्रण खो बैठते हैं। परिवारों में फंसाकर वे कहानी को और कमजोर बनाते हैं। शाही परिवार से जुड़कर रही सही कसर भी पूरी हो जाती है। लाली के रोल में अक्षरा हसन इस फिल्म की सबसे कमजोर कड़ी हैं। उनके चेहरे पर कोई भाव नहीं है।

वे पूरी तरह से निराश करती हैं। विवान ने अपने किरदार को चुलबुला बनाने में काफी मेहनत की और वे इसमें सफल भी रहे, लेकिन इमोशनल सीनों में वे मार खाते हैं। गुरमीत चौधरी मिसफिट लगते हैं। रवि किशन ओवर एक्टिंग के शिकार हैं। सौरभ शुक्ला, दर्शन जरीवाला और संजय मिश्रा की तिकड़ी अपने किरदारों से फिल्म को मनोरंजक बनाने की असफल कोशिश करती है।

फिल्म का गीत-संगीत अच्छा है। लोकेशन अच्छी हैं। एडीटिंग खराब है। प्रोडक्शन वेल्यू एवरेज हैं। किसी बड़े चेहरे की गैरमौजूदगी से लेकर कमजोर पटकथा और मेन लीड एक्टरों का बेदम अभिनय इस फिल्म के रास्तों की रुकावट है। बॉक्स ऑफिस पर इस शादी के लड्डू किसी को हजम नहीं होंगे।

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