नई दिल्ली। गुजरात चुनाव के पहले से ही पाटीदार आंदोलन और पाटीदारों के आरक्षण का बिगुल फूंका गया था। हार्दिक पटेल इस आंदोलन के अगुवा के तौर पर जाने गए थे। पाटीदारों के आरक्षण को लेकर केन्द्र सरकार से लेकर राज्य सरकार तक पर दबाव बनाने का काम भी किया गया था। पाटीदार समुदाय को एक जुट कर वोट की राजनीति तय करने के लिए बार बार बातें की गई। गुजरात चुनाव में हार्दिक पटेल ने पाटीदार आरक्षण को मुख्य मुद्दा बनाने के लेकर दबाव बनाने का काम भी किया। साथ ही गुजरात के विकास को भी अपने निशाने पर लिया लेकिन चुनावी जंग शुरू होने के पहले के खेल में हार्दिक की रणनीति ने उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को सामने लाकर रख दिया।
हार्दिक का रंग ना आया काम
पाटीदार आरक्षण आंदोलन की बात करें तो हार्दिक पटेल का नाम सबसे पहले सामने आता है। लेकिन आंदोलन के साथ हार्दिक ने जब गुजरात चुनाव में कांग्रेस के साथ मिलकर विकास के नाम पर सरकार को घेरने का प्रयास किया तो लगा कि गुजरात में भाजपा के लिए हार्दिक और कांग्रेस का साथ सत्ता तक पहुंचने के लिए रोड़ा बनेगा। लेकिन जैसे जैसे चुनाव चढ़ा और हार्दिक की राजनीतिक महत्वाकांक्षा सामने आने लगी इसके साथ ही हार्दिक की इमेज ने भी कुछ ऐसा रंग दिखाया कि हार्दिक की नाव के सहारे कांग्रेस की सत्ता तक पहुंचने की गणित तबाह होने लगी। जहां उसे पाटीदारों का भी साथ ना मिला ठीक से वहीं हार्दिक से हाथ मिलने से गैर पाटीदार विरादरी के वोटरों ने भी कांग्रेस से मुंह मोड़ लिया।
वायरल सीडी ने खोली आंदोलन की सियासत
लगातार भाजपा के ऊपर निशाना साधने वाले हार्दिक के चरित्र को लेकर इस चुनाव में कई वीडियो वायरल हुए। जिसमें हार्दिक का पाटीदारों की राजनीति और आरक्षण के नाम पर चलाए जा रहे आंदोलनों को लेकर लोगों को गुमराह करने का सच और कई तरह का फंड आदोलनों के नाम पर लेकर ऐश करने का सच वायरल हुआ। जिसके बाद एक तो पाटीदारों ने भी हार्दिक के चरित्रिक पतन को देखते हुए अपने आपको हार्दिक की राजनीति से अलग किया । वहीं गैर पाटीदारों ने भी अपने आपको पाटीदारों के आदोलनों के नाम पर हार्दिक के साथ कांग्रेस से अपना नाता तोड़ने पर मजबूर किया । क्योंकि यहां पर आरक्षण के साथ विकास के नाम पर जनता ने अपने आपको ठगा पाया।
अजस्र पीयूष