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जल बंटवारे के खिलाफ पंजाब विधानसभा में प्रस्ताव पारित

Punjab assembly जल बंटवारे के खिलाफ पंजाब विधानसभा में प्रस्ताव पारित

चंडीगढ़| नदी जल बंटवारे पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को बुधवार को पंजाब विधानसभा ने नामंजूर करते हुए अन्य राज्यों के साथ नदी जल बंटवारे के खिलाफ सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया। इस दौरान कांग्रेस के विधायक सदन में नहीं थे। पंजाब की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने 2004 में पड़ोसी राज्यों से जल बंटवारे से संबंधित समझौते को रद्द करने का कानून बनाया था। इस पर हरियाणा की गुहार पर सर्वोच्च न्यायालय ने प्रेसीडेंशियल रेफरेंस के तहत सुनवाई की और पंजाब द्वारा बनाए कानून को असंवैधानिक घोषित करते हुए राज्यों के बीच जल बंटवारे के पक्ष में फैसला दिया। इसके खिलाफ बुधवार को पंजाब विधानसभा ने प्रस्ताव पारित करते हुए कहा कि राज्य का पानी किसी को नहीं दिया जाएगा।

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पंजाब के उप मुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल ने प्रस्ताव को ऐतिहासिक करार देते हुए कहा कि इससे अब सतलज-यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर का मुद्दा हमेशा के लिए दफन हो गया है।सत्तारूढ़ शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने कहा कि राज्य विधानसभा ने सरकार और इसके अधिकारियों को एसवाईएल नहर का निर्माण नहीं करने और अन्य राज्यों से पानी की अब तक की आपूर्ति के बदले में पैसा मांगने का निर्देश दिया है। यह निर्देश अंतिम और बाध्यकारी है।विधानसभा के एक दिवसीय विशेष सत्र के दौरान मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने इस प्रस्ताव को पेश किया जिसे कांग्रेस के 42 विधायकों की अनुपस्थिति में स्वीकार किया गया।

राष्ट्रपति संदर्भ पर 2004 के कानून को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा असंवैधानिक घोषित किए जाने के विरोध में कांग्रेस के सभी विधायकों ने गत 11 नवम्बर को विधानसभा की सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया था। पार्टी का कहना है कि बादल सरकार ने मामले में राज्य की अच्छे तरीके से पैरवी नहीं की।प्रस्ताव में पंजाब सरकार को निर्देश दिया गया है कि वह पिछले कुछ दशकों में अन्य राज्यों को दिए गए राज्य के जल के भुगतान की मांग करे। प्रस्ताव में दिल्ली, हरियाणा और राजस्थान से जल के बकाया भुगतान की वसूली के लिए केंद्र से सहायता मांगने के लिए पंजाब सरकार से कहा गया है। सदन को संबोधित करते हुए प्रकाश सिंह बादल ने दोहराया कि पंजाब, नदी जल के एक बूंद का भी त्याग नहीं करेगा और हरियाणा के लिए कोई जल छोड़ने की अनुमति नहीं देगा।

मुख्यमंत्री ने कहा, “हरियाणा को पानी नहीं देने के लिए राज्य सरकार हर संभव प्रयास करेगी। हम किसी भी कीमत पर (सर्वोच्च) न्यायालय के आदेश का पालन नहीं करेंगे। पंजाब से पानी का एक बूंद भी किसी को नहीं दिया जाएगा, चाहे हमें जेल क्यों न जाना पड़े।”कांग्रेस विधायकों की अनुपस्थिति पर बादल ने कहा कि विपक्षी दल ने नदी जल समेत अन्य क्षेत्रीय मुद्दों पर राज्य को धोखा दिया है।विधानसभा ने पंजाब सरकार, उसके विभागों और एजेंसियों को किसी भी एजेंसी को भूमि नहीं सौंपने और विवादास्पद सतलज-यमुना लिंक नहर के निर्माण में सहयोग नहीं करने का निर्देश भी दिया है।

पंजाब सरकार ने मंगलवार को करीब चार दशक पहले सतलज-यमुना लिंक नहर निर्माण के लिए करीब 5000 एकड़ जमीन के अधिग्रहण की अधिसूचना को रद्द करने का आदेश दिया था।पंजाब और हरियाणा के बीच बढ़ते जल विवाद के बीच हरियाणा के भाजपा विधायकों ने बुधवार को पंजाब के राज्यपाल वी. पी. सिंह बडनोर से मुलाकात की और अधिग्रहीत भूमि को गैर अधिसूचित करने की पंजाब सरकार की पहल को मंजूरी नहीं देने का आग्रह किया।भाजपा विधायकों का नेतृत्व पार्टी के हरियाणा इकाई के अध्यक्ष सुभाष बराला ने किया। हरियाणा के भाजपा विधायकों ने कहा कि पंजाब सरकार की पहल सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की अवमानना है।

हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने पंजाब विधानसभा द्वारा पारित प्रस्ताव पर कड़ी आपत्ति जताई है। उन्होंने इसे असंवैधानिक करार दिया है। हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सरकार है, जबकि पंजाब में भाजपा साल 2007 से शिरोमणि अकाली दल के साथ सरकार में है। एसवाईएल नहर पंजाब और हरियाणा में दो बड़ी नदियों सतलज व यमुना को जोड़ती है। इसके एक बड़े हिस्से का निर्माण 1990 के दशक में हो चुका है। इस पर 750 करोड़ रुपये खर्च भी हो चुके हैं।

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