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प्राइवेट अस्पतालों की खुली पोल, एक ही परिवार के सदस्य कर रहे है अस्पताल का संचालन

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मैनपुरी। सूबे में सबका साथ सबका विकास की सरकार है और सरकार के लोग भी ये चाहते हैं, कि आम जनमानस को सरकार की हर योजना का लाभ सीधा मिले लेकिन बात अगर जनपद स्तर की करी जाए तो नतीजा ये निकालकर सामने आता है, कि जिसे सोचने पर भी आश्चर्य होता है। सरकार की ओर से लग भग सभी विभागों और सरकार की योजनाओं के लिए जिलाधिकारी को निर्देशित किया गया है, कि सरकार की हर योजना आम जनता के पास पंहुचे लेकिन पूर्व की सपा सरकार में मुलायम का गण कहे जाने वाले जनपद मैनपुरी की हालत खस्ताहाल हो गई। यहां अपराध विधुत व्यवस्था से लेकर जो महत्वपूर्ण विभाग है, स्वास्थ्य जिसका सीधा सम्बन्ध इंसान की जिंदगी से होता है। लेकिन सब राम ही भरोसे चल रहा है, यहां किराने की दुकान की तरह गली-गली कूचे-कूचे में प्राइवेट नर्सिंग होम, अस्पताल और क्लिनिक खुले हैं। जिनमें खुलेआम इंसान की जिंदगी का सौदा किया जाता है और जब बिगड़ जाए तो पैसों या राजनीति दबाव में समझौता करा दिया जाता है। ऐसे ही 2 मामले मैनपुरी शहर के 2 अस्पतालों से सामने आए हैं। जिन्होंने स्वस्थ्य विभाग की जांच और कार्यशैली दोनों पर प्रशन चिन्ह (?) लगा दिया है।

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Open pole of private hospitals

मैनपुरी में प्राइवेट अस्पतालों की अवैध बसूली और अव्यवस्थाओं की पोल उस समय खुलती नजर आई जब सादा प्रसव कराने आए एक परिवार से सादा प्रसव के 13 हजार रुपये की मांग की गई। गरीब परिवार इतनी बड़ी रकम सुनने के बाद भौचक्का रह गया और पूरा मामला जिलाअस्पताल से महज कुछ ही दूरी पर स्थित शिवानी अस्पताल का है। यंहा सूरजपुर बरा निवासी सुरजीत किसी के कहने पर अपनी पत्नी पूजा का प्रसव कराने शिवानी अस्पताल लेकर आया यहां अस्पताल प्रबंधन की ओर से उससे सादा प्रसव का खर्चा महज 5 से 7 हजार के बीच बताया गया। लेकिन आधे घण्ंटे में ही पूजा का प्रसव हो गया जिसके वाद जब सुरजीत से अस्पताल की बताई हुई फीस जमा की तो अस्पताल के कर्मचारियों ने उसे 13 हजार का खर्चा बता दिया जिसे सुनकर सुरजीत के पैरों तले जमीन ही खिसक गई। गरीब सुरजीत इतने पैसे कहां से लाता मजबूर सुरजीत ने इस बात को मीडिया के सामने रखा तो आनन-फानन अस्पताल प्रबन्धन ने सुरजीत की पत्नी को अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया। मीडिया ने जब अस्पताल में दी जाने वाली सुविधाओं और प्रसव कराने वाले डॉक्टर व अस्पताल के बिल के बारे में जानकारी लेनी चाही तो अस्पताल के मालिक डॉक्टर राधाकृष्ण ने मीडिया के एक भी सवाल का संतोष जनक जवाव नही दे पाए। वहीं जब अस्पताल का बिल दिखाने की बात की गई तो डॉक्टर ने फाइल तो दिखाई लेकिन जो गड़बड़ फाइल में कई गई थी, वो कागज कैसे डॉक्टर ने फाइल से अलग किए।

ये आप तस्वीरों में स्वम् ही देख लीजिए इस फाइल में एक बेहद चौकाने वाली बात ये थी, कि अस्पताल स्टाफ मरीज को भर्ती करने से पहले ही धोके से एक कोरे कागज पर हस्ताक्षर करा लेते है। जिससे बाद में कोई बात बिगड़े तो उस कागज पर अपनी मनमानी बात लिखी जा सके। असप्ताल में व्यवस्थाओं की बात करें, तो सब राम भरोसे था। ये हाल यहां सिर्फ इसी असप्ताल का नहीं था, यंहा के बाद जब मीडिया यहां थोड़ी दूर स्थित खुशी हॉस्पिटल पहुंची तो यहां के हालात देखकर तो आप भी दंग रह जाएंगे। यहां इंसान की जिंदगी की कोई कीमत ही नहीं है, एक पूरा परिवार ही मिलकर पूरे अस्पताल को चला रहा है और कहते है कि इन्हीं में एक डॉक्टर है, एक फार्मासिस्ट है, एक जीएनएम है, यहां भी सिर्फ खांसी, झुकाम, व बुखार की दवाई नहीं दी जाती यहां भी वो सारे काम इंसान के साथ होते हैं, जो एक मेटरनिटी अस्पताल में किए जाते हैं। यहां ऑपरेशन डिलीवरी व सीजर डिलीवरी सब कुछ किया जाता है। जब इस असप्ताल के मालिक से बात की गई तो उनकी नजर में उनका अस्पताल शायद सैफई मेडिकल कॉलेज से भी बेहतर था। उनका कहना है कि हमारे यहां सारे डॉक्टर ऑन काल आ जाते है और हमारे यंहा सारी व्यवस्थाएं है। लेकिन हकीकत क्या है, ये आप स्वम् तस्वीरों में देख ही सकते हैं। अब बारी थी इन सबके बारे में मुख्य चिकित्सा अधिकारी से जानकारी लेने की तो जब मीडिया की टीम सीएमओ साहब से मिली तो उनका का जवाब तो लाजवाब था। एक जिम्मेदार पद पर बैठे अधिकारी ने महज इतनी गंभीर बात को बेहत हल्के में लेते हुए वहीं पुरानी रटी हुई बात कही की हम जांच करा लेंगे और हो भी क्यों ना, क्योंकि विभाग के डॉक्टर अस्पताल आवासों में सरकार के आदेशों की धज्जियां उड़ाते हुए प्राइवेट क्लिनिक चलते हैं। खैर अब देखना ये है कि कब इन अस्पतालों की जांच होती है।

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