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फिल्मी पर्दे से लेकर अम्मा बनने तक का जयललिता का सफर

jay lalita फिल्मी पर्दे से लेकर अम्मा बनने तक का जयललिता का सफर

फिल्मी पर्दा हो या फिर दक्षिण भारत की राजनीति की बागडोर को संभालना जयललिता का नाम किसी पहचान का मोहताज नहीं है। तमिल फिल्मों से अपने करियर की शुरूआत करने के बाद राजनीति की लंबी पारी खेलने वाली जयललिता तमिलनाडु की जनता के लिए अम्मा कैसे बन गई अमूनन यह सवाल लोगों के दिमाग में घूमता रहता है इसलिए उनके जन्मदिन के अवसर यानि 24 फरवरी के दिन भारत खबर आपको जयललिता के अभिनय की दुनिया से लेकर अम्मा तक के सफर के बारे में बताने जा रहा है।

 

मां को नाराज कर तय किया फिल्मी सफर

जयललिता का जन्म 24 फरवरी 1948 को हुआ था। लेकिन महज 2 साल की उम्र में उनके पिता की मौत हो गई। जिसके बाद उनका मां उन्हें अपने साथ बेंगलुरु ले आई। वहां पर अपनी पढ़ाई शुरु कर दी इसके बाद उन्हें आर्थिक तंगी को झेलना पड़ा। उस वक्त ऐसा दौर था कि लोग महिलाओं को फिल्मों में काम करने को लेकर अच्छी बात नहीं मानते थे। जयललिता ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत 1982 में की थी, लेकिन इससे पहले जयललिता एक अभिनेत्री थी और उन्होने हिन्दी, तेलुगु, तमिल, कन्नड़ और अंग्रेजी फिल्म में काम किया है। जयललिता जब स्कूल में थी तब ही उनकी मां ‘संध्या’ ने उनको फिल्मों मे काम करने के लिए राजी कर लिया था।

जिसके बाद उन्होंने ‘एपिसल’ नाम की एक अंग्रेजी फिल्म मे काम किया। इसके बाद जयललिता ने 15 वर्ष की आयु से ही कन्नड़ फिल्मों में मुख्य अभीनेत्री की भूमिका में काम करना शुरु कर दिया था। कन्नड़ भाषा में उनकी पहली फिल्म ‘चित्राडा गोम्बे’ है जो 1964 में रिलीज हुई थी। इसके बाद जयललिता ने अपने फिल्मी करियर में आगे बड़ते हुए तमिल फिल्मों की तरफ रुख किया। जयललिता पहली ऐसी अभिनेत्री थी जिन्होंने अपनी फिल्म में स्कर्ट पहनी थी। वैसे तो जयललिता ने 300 से ज्यादा फिल्मों में काम किया है लेकिन उन्होंने अपनी ज्यादातर फिल्में ‘शिवाजी गणेश’ और ‘एमजी रामचंद्रन’ के साथ की है।

jay lalita 2 1 फिल्मी पर्दे से लेकर अम्मा बनने तक का जयललिता का सफर
फिल्मों के बाद राजनीति की पारी

अपने फिल्मी करियर से आगे बढ़ते हुए जयललिता ने राजनीति करियर की शुरुआत अपने सहयोगी एक्टर ‘एमजी रामचंद्रन’ के साथ ही की थी। इसके बाद 1983 में जयललिता को अन्नाद्रमुक का प्रोपेगेंडा सचिव नियुक्त किया गया था। जयललिता की अंग्रेजी भाषा पर अच्छी पकड़ होने के कारण उनको पार्टी प्रमुख रामचंद्रन ने राज्यसभा में भिजवाया और उन्हे राज्य विधानसभा के उपचुनाव जितवाकर उनको राज्यसभा का सदस्य बनवाया। इसके बाद जयललिता 1984 से 1989 तक राज्यसभा सदस्य रही। लेकिन पार्टी के कुछ लोगों को जयललिता और रामचंद्रन की दोस्ती रास नही आई और पार्टी के कुछ सदस्यो ने रामचंद्रन को जयललिता के खिलाफ भड़का दिया और दोनो के बीच दरार पैदा कर दी।

1987 में पार्टी मुख्य रामचंद्रन के निधन के बाद जयललिता ने खुद को रामचंद्रन की विरासत का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया और खुद को अन्नाद्रमुक का महासचिव बनाते हुए मुख्यमंत्री के लिए चुनाव लड़ा इसके चलते उनकी पार्टी दो गुटों मे बट गई। एक गुट अम्मा के समर्थन में था तो वहीं दूसरा गुट जिसका नेत्रत्व रामचंद्रन की पत्नी जानकी रामचंद्रन कर रहीं थी अम्मा के विरोध में था। लेकिन यह लड़ाई ज्यादा समय तक नही चली और 1989 में पार्टी वापस एक हो गई।

इसके बाद सन 1991 में राजीव गांधी की मृत्यु के बाद अन्नाद्रमुक ने कांग्रेस के साथ चुनाव लड़ा और अपनी सरकार बनाई। जयललिता 24 जून 1991 से 12 मई 1996 तक राज्य की पहली निर्वाचित और सबसे कम उम्र की मुख्यमंत्री बनी। अपने इस कार्यकाल में उन्होने तमिलनाडु के विकास के लिए बहुत सी योजनाएं लागू की इनमें से ही एक ‘क्रैडल बेबी स्कीम थी जिसके तहत बालिकाओं की रक्षा और बेसहारा बच्चियों के खुशहाल जीवन मिल सकें। साथ ही अम्मा ने ऐसे पुलिस थाने खोले जहां केवल महिला अधिकारी ही तैनात होताी थी।लेकिन 1996 के चुनावो में जयललिता को मुंह की खानी पड़ी और इसके बाद जयललिता और उनकी पार्टी के बहुत से लोगों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले सामने आए।

 

आरोपों में लिप्त होने के बाबजूद मिली जीत

पहली बार मुख्यमंत्री रही अम्मा पर बहुत से आरोप लगे लेकिन इसके बाद भी अम्मा 2001 के चुनावों मे अपनी पार्टी को जिताने में सफल रही और एक बार फिर मुख्यमंत्री के पद पर आसीन हुई। लेकिन इसी दौरान कोर्ट मे उन के खिलाफ चल रहे केस के चलते उनको जेल की सलाखों के पीछे जाना पड़ा और उन्होने अपनी कुर्सी उनके खास मानें जाने वाले पन्नीरसेलवम को सौंप दी।

तमिलनाडु की सत्ता की कमान किसी और के हाथों में सौपने का खामियाजा जयललिता को साल 2004 में हुए विधानसभा चुनावों में भुगतना पड़ा, इन चुनावों में अम्मा की पार्टी हार गई। हालांकि साल 2011 में हुए विधानसभा चुनावों में एक बार फिर से जनता ने अम्मा पर भरोसा जताते हुए प्रदेश के कमान उनके हाथों में दे दी। अम्मा का तमिलनाडु की मुख्यमंत्री के तौर पर यह आखरी कार्यकाल था।

दिलों में बनाई खास जगह

तमिलनाडु की सत्ता पर काबिज होने के बाद जयललिता पर कई तरह के आरोप लगे वो कई बार जेल भी गई लेकिन इसके बाबजूद उन्होंने जो जगह लोगों के दिलों में एक अलग जगह बनाई। तमिलनाडु की जनता जयललिता को प्रेम और सम्मान के नजरिए से आज भी देखती है क्योंकि जो उन्होंने गरीबों का पेट भरने और उनके सिर पर एक छत्त देने के लिए जो काम जयललिता ने किया है वो काम शायद ही कोई कर सकता है।

तमिलनाडु की जनता अम्मा को अपने परिवार के सदस्य की तरह देखती है। अम्मा का काम आज भी कई लोगों का पेट भर रहा है, किसी बच्चे के चेहरे पर मुस्कान ला रहा है शायद यही कारण है जब 5 दिसबंर 2016 को जब उनकी मौत हुई थी तब तमिलनाडु के लोग तो मायूस थे कि कहीं ना कहीं इस मायूसी छा गई। मगर आज भी अम्मा लोगों के दिलों में जिंदा है।

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