नई दिल्ली। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का मंगरवार को 85वां जन्म दिन है। उनका जन्मदिन 26 सितंबर सन 1932 को था। उनकी माता का नाम अमृत कौर और पिता का नाम गुरूमुख सिंह था। जिस वक्त भारत का बटवारा हुआ था उस वक्त मनमोहन सिंह अपने परिवार के साथ भारत आ गए थे। मनमोहन सिंह ने अपनी स्नातक की पढ़ाई पंजाब विश्वविद्यालय से की उसके बाद वो कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय चले गए वहां से उन्होंने पीएचडी की। उसके बाद उन्होंने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से डी. फिल की शिक्षा प्राप्त की उनकी किताब इंडियाज़ एक्सपोर्ट ट्रेंड्स एंड प्रोस्पेक्ट्स फॉर सेल्फ सस्टेंड ग्रोथ भारत की अन्तर्मुखी व्यापार नीति की पहली और सटीक आलोचना मानी जाती है।
बता दें कि मनमोहन खास तौर पर अर्थशास्त्र के अध्यापक के रूप मो जाना जाता है। पंजाब विश्वविद्धालय के बाद वो दिल्ली स्कूल ऑफ इकनामिक्स में प्राध्यापक रहे। इसी बीच वो संयुक्त राष्ट्र व्यापार और विकास सम्मेलन सचिवालय में सलहाकार भी रहे और 1987 और सन 1990 में जेनेवा में साउथ कमीशन में सचिव के पद पर रहे। 1971 में डॉ॰ सिंह भारत के वाणिज्य एवं उद्योग मन्त्रालय में आर्थिक सलाहकार के तौर पर नियुक्त किये गये।
वहीं इसके तुरन्त बाद 1972 में उन्हें वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार बनाया गया। इसके बाद के वर्षों में वे योजना आयोग के उपाध्यक्ष, रिजर्व बैंक के गवर्नर, प्रधानमन्त्री के आर्थिक सलाहकार और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष भी रहे हैं। भारत के आर्थिक इतिहास में हाल के वर्षों में सबसे महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब डॉ॰ सिंह 1991 से 1996 तक भारत के वित्त मन्त्री रहे। उन्हें भारत के आर्थिक सुधारों का प्रणेता माना गया है। आम जनमानस में ये साल निश्चित रूप से डॉ॰ सिंह के व्यक्तित्व के इर्द-गिर्द घूमता रहा है। डॉ॰ सिंह के परिवार में उनकी पत्नी श्रीमती गुरशरण कौर और तीन बेटियाँ हैं।
राजनीति करियर
बता दें कि मनमोहन सिंह को राजीव गाधी के कार्यकाल में 1985 में भारतीय योजना आयोग का उपाध्यक्ष बनाया गया। इस पद पर उन्होंने लगातार पांच सालों तक काम किया। जबकि 1990 में ही ये प्रधानमंत्री के सलाहकार बन गए थे। जब पी वी नरसिंहराव प्रधानमंत्री बने, तो उन्होंने मनमोहन सिंह को 1991 में अपने मंत्रिमंडल में शामिल करते हुए उन्हें वित्त मंत्रालय की सारी जिम्मेदारी उन्हें सौंप दी। इस समय डॉ॰ मनमोहन सिंह न तो लोकसभा और न ही राज्यसभा के सदस्य थे। लेकिन संवैधानिक व्यवस्था के मुताबिक सरकार के मंत्री को संसद का सदस्य होना जरूरी होता है।
इसलिए उन्हें 1991 में असम से राज्यसभा के लिए चुना गया। मनमोहन सिंह ने मनमोहन सिंह ने आर्थिक उदारीकरण को उपचार के रूप में पेश किया और भारतीय अर्थव्यवस्था को विश्व बाज़ार के साथ जोड़ दिया। डॉ॰ मनमोहन सिंह ने आयात और निर्यात को भी सरल बनाया। लाइसेंस और परमिट गुज़रे ज़माने की चीज़ हो गई। निजी पूंजी को उत्साहित करके रुग्ण और घाटे में चलने वाले सार्वजनिक उपक्रमों हेतु अलग से नीतियाँ विकसित कीं। नई अर्थव्यवस्था जब घुटनों पर चल रही थी, तब पी. वी. नरसिम्हा राव को कटु आलोचना का शिकार होना पड़ा। विपक्ष उन्हें नए आर्थिक इस्तेमाल से सावधान कर रहा था। लेकिन श्री राव ने मनमोहन सिंह पर पूरा यक़ीन रखा।
जिसकी वजह से आलोचना करने वालों के मुंह सिर्फ दो साल में बंद हो गए और उनकी आँखें फैल गईं। उदारीकरण के बेहतरीन परिणाम भारतीय अर्थव्यवस्था में नज़र आने लगे थे और इस प्रकार एक ग़ैर राजनीतिज्ञ व्यक्ति जो अर्थशास्त्र का प्रोफ़ेसर था, भारतीय राजनीति में प्रवेश हुआ ताकि देश की बिगड़ी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाया जा सके।
रानी नक़वी