जलियांवाला बाग
अंग्रेजों के राज को भारत से खत्म करने के लिए कई सारे प्रयास किए गए। इस दौरान कई सारे आंदोलन हुए। आंदोलनों में कई लोगों की जान भी चली गई। लेकिन इस सब के बीच कई सारे हत्याकांड भी हुए। उनमें से एक है जलियांवाला बाग हत्याकांड। जलियांवाला बाग नाम इतिहास में हमेशा हमेशा के लिए अमर होने वाला नाम है। इस हत्याकांड के बारे में सुनने के बाद हर भारतीय का खून भी खौल जाता है। दिन था 13 अप्रैल साल 1919 का, जब अंग्रेजी सेना की एक टुकड़ी ने भारतीय प्रदर्शनकारियों पर अंधाधुंध गोलियां चलानी शुरू कर दी। जिसमें सैकड़ों लोगों की मौत हो गई। ब्रिटिश सरकार के अत्याचारी के नाम से पहचाने वाले जनरल डायर ने इस हत्याकांड के ऑर्डर दिए थे।
अंग्रेजों द्वारा रोलेट एक्ट लगाया गया था। इस एक्ट के तहत बिना किसी ट्रायल के पुलिस किसी भी संदिग्ध को गिरफ्तार कर सकती थी। इस एक्ट के तहत डॉ. सत्यपाल और डॉ. सैफुद्दीन किचलू को गिरफ्तार किया गया था। लेकिन जब इस बारे में लोगों को पता लगा तो उन्होंने इसका विरोध करना शुरू कर दिया। इसके विरोध में कई सारी रैलियां तथा विरोध प्रदर्शन जगह जगह होने लग गए। लेकिन इससे ब्रिटिश सरकार काफी आहत हुई। क्योंकि लोग उनके खिलाफ विरोध करने लग गए थे। जिसके बाद ब्रिटिश सरकार ने अमृतसर में मार्शल लॉ लागू कर दिया था। जिसके बाद सार्वजनिक स्थान पर सभाओं तथा रैलियां या किसी भी प्रकार के आंदोलन पर रोक लगा दी थी। लेकिन इस दौरान 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के मौके पर जलियांवाला बाग में कई सारे सिख एकत्रित हो गए थे। तथा विरोध करने लग गए थे।
जलियांवाला बाग में बैसाखी के दिन सिख लोग एकत्रित होकर ब्रिटिश सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करने लग गए थे। इस भीड़ में कई सारी महिलाएं तथा बच्चे शामिल थे। जलियांवाला बाग में चारों तरफ बड़ी दिवारें बनी हुई थी। कारणवश वहां आने-जाने का सिर्फ एक ही रास्ता था। इस दौरान अत्याचारी ब्रिगेडियर जनरल रेजिनाल्ड एडवार्ड हैरी डायर ने मौके पर बंदूकधारी सिपाहियों को भेज दिया था। और बिना किसी को सूचना दिए सिपाहियों ने ताबड़तोड़ गोलियां चलानी शुरू कर दी थी। 10 मिनट तक चली फायरिंग में महिलाओं समेत बच्चे तथा पुरुषों की भारी मात्रा में मौत हो गई थी। तब ही से यह इतिहास में एक काला सच बन गया जोकि कभी भी भुलाया नहीं जा सकता है।