या देवी सर्वभूतेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।
नवरात्र के नौवें दिन मां शक्ति के स्वरुप देवी सिद्विदात्री की पूजा की जाती है। देवी मां सिद्धि प्रदान करने वाली हैं,इनकी चार भुजाएं हैं,जिनमें क्रमशरू चक्र,शंख, गदा और कमल पुष्प सुशोभित हैं।अचूक संग्राम के उपरान्त देवी ने दुर्गम नामक दैत्य का वध किया था।इसी कारण ये मां दुर्गा के नाम से भी विख्यात हैं। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार अणिमा, महिमा, गरिमा, लहिमा, प्राप्ति, प्राकाम्या, इषक, वषित्र आठ मूख्य सिद्धियां हैं। देवी पुराण के अनुसार भगवान “शंकर का अर्द्धनारिश्वर स्वरूप देवी सिद्धिदात्रि का ही है।
मां का स्व3प अत्यंत मनमोहक और सुन्दर है। शास्त्रों के अनुसार देवी भगवान विष्णु की प्रियतमा लक्ष्मी के समान कमल के आसन पर विराजमान हैं और इनके हाथों में कमल , शंख , गदा और सुदर्शन चक्र हैं। देव,यक्ष,किन्नर,दानव ऋषि-मुनि,साधक,विप्र और संसारीजन सिद्धिदात्री की पूजा नवरात्र के नौवें दिन करके जीवन में यश,बल और धन की प्राप्ति करते हैं।
देवी सिद्धिदात्री का स्वरुप का दिव्य मांगलिक व अत्यन्त मनोहारी है। मंत्र-तंत्र यंत्र की अधिष्ठात्री देवी सिद्धिदात्री की उपासना से साधक को समस्त सिद्धियां प्राप्त हो जाती हैं।माता अपने भक्तों के संपूर्ण मनोरथ को पूर्ण करती हैं।
नौवें दिन सभी नवदुर्गाओं के सांसारिक स्वरूप की गंगा, नर्मदा कावेरी या समुद्र जल में विसर्जित करने की परंपरा भी है। सिद्धिदात्री देवी मां सरस्वती का भी स्वरूप हैं जो श्वेत वस्त्रालंकार से युक्त महाज्ञान और मधुर स्वर से अपने भक्तों को सम्मोहित करती हैं।