श्रीराम भक्त श्री हुनमानजी के जीवन चरित्र से एक सीख लें। एक साधारण राज्य किष्किन्धा नरेश केसरी के यहां अवतरित हुए परम भक्त हनुमान जी ने अपने उत्साह के बदौलत, देवासुर संग्राम विजयी दिलाने वाले राजा दशरथ के पुत्र तथा स्वयं विष्णु के अवतार प्रभु श्रीराम जैसे संप्रभुत्वशाली तथा ताकतवर राजकुमार को रावण जैसे महान योद्धा से हुये युद्ध मे हनुमान जी उत्साह रुपी शौर्य ने विजय हासिल कराया।
वास्तविक में इसी साहस को देखकर गोस्वामी तुलसीदासजी ने कहा है..अतुलित बल धामं..यानि अतुलनीय बलवान हनुमान जी थे। और इस महान पराक्रमी को शौर्यवीर बनाने में सबसे बड़ी भूमिका रही है, हनुमान जी के उत्साह की। आईये जरा इस श्लोक के माध्यम से भी इसे समझने का प्रयास करते हैं:-
उत्साहो बलवानार्य
नास्त्युत्साहात्परं बलम्।
सोत्साहस्य च लोकेषु
न किंचिदपि दुर्लभम्॥
उत्साह श्रेष्ठ पुरुषों का बल है, उत्साह से बढ़कर और कोई बल नहीं है। उत्साहित व्यक्ति के लिए इस लोक में कुछ भी दुर्लभ नहीं है॥
अतः किसी भी कार्य को करने का मन में उत्साह हो तो निश्चित ही वह व्यक्ति उस हर ऊंचाईयों को स्पर्श करता है, जहां तक पहुंचना सर्वजन सामान्य के लिए आसान नहीं रहता।
(साभार:- ज्योतिषाचार्य पण्डित विनोद चौबे की फेसबुक वॉल से)