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अमेठी की सीटों पर तस्वीर साफ न होने से कांग्रेस-सपा नेताओं में असमंजस बरकरार

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लखनऊ। गांधी परिवार के कारण अमेठी राजनीतिक पण्डितों के लिए हमेशा चर्चा का विषय रहा है, लेकिन 2017 के चुनाव में यहां हवा का रुख कब बदल जाये, कुछ कहा नहीं जा सकता है। जनपद की दो अतिमहत्वपूर्ण विधानसभाओं गौरीगंज और अमेठी पर विशेष तौर पर राजनीतिक पंडितों की निगाहें लगी हुई हैं।

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रविवार को कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी और समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष अखिलेश यादव की संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में भी अमेठी और रायबरेली की सीटों पर तस्वीर साफ नहीं हो सकी। दोनों ही नेता सिर्फ गठबन्धन की बात कहते रहे। इसके विपरीत कांग्रेस और सपा के स्थानीय नेताओं और उनके समर्थकों की ओर से लगातार बयानबाजी जारी है। कांग्रेस चुनाव प्रचार समिति के अध्यक्ष डॉ. संजय सिंह कहते हैं कि कांग्रेस अमेठी और रायबरेली की सभी 10 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। जबकि सपा प्रत्याशी गायत्री प्रजापति कहते हैं कि अमेठी की प्रत्याशिता को लेकर लगातार कुछ लोगों द्वारा भ्रम फैलाकर आम जनता को गुमराह किया जा रहा है। इन सबके बीच विधानसभा चुनाव की तारीख नजदीक आ रही है। ऐसे में अमेठी की सियासी सूरतेहाल भी रंग बदलती नजर आ रही है। अभी तक अमेठी विधानसभा सीट से बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने रामजी मौर्य, सपा ने गायत्री प्रसाद प्रजापति और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने डॉ. संजय सिंह की पहली पत्नी गरिमा सिंह को अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया है। जबकि डॉ. संजय सिंह की दूसरी पत्नी अमिता सिंह का दावा है कि वह इस क्षेत्र से पार्टी का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं, इसलिए इस बार भी यह सीट कांग्रेस खुद लड़ेगी और उन्हें उम्मीदवार बनायेगी।

ऐसे में चुनाव में प्रत्याशियों को लेकर कयासों का बाज़ार गर्म है। दूसरी ओर भाजपा नेता आशीष शुक्ल भी बागी तेवर दिखा रहे हैं। 01 फरवरी को उन्होंने जनसभा का ऐलान कर रखा है। उनके शिवसेना से लड़ने की भी चर्चा हो रही है। इन सबके बीच भाजपा में चल रही अन्दरूनी चर्चाओं के अनुसार अमेठी, गौरीगंज और जगदीशपुर में जल्द ही बदले जा सकते हैं। भाजपा के प्रत्याशी 31 तारीख तक मिल सकती है गौरीगंज से तेजभान सिंह को और अमेठी से आशीष शुक्ला को टिकट जगदीशपुर में मंथन जारी है।

गायत्री प्रसाद प्रजापति सपा के टिकट पर पुनः इतिहास दोहराने के प्रयास में हैं, तो पांच साल से लगातार हो रही अराजकता, बढ़ती नशाखोरी और स्थानीय मुद्दे उनकी राह का बड़ा रोड़ा हैं। उनके लिए सपा के बेस वोट बैंक यादव की नाराजगी को दूर करना बड़ी चुनौती हैं। इसके अलावा पिछड़े तबके के लोग उचित सम्मान नहीं मिलने की बात भी जोर शोर से उठा रहे हैं। खास बात है कि गायत्री प्रजापति के समर्थक दावा कर रहे हैं कि अगर पार्टी यह सीट कांग्रेस को देती है, तो वह निर्दलीय चुनाव लड़कर जीतेंगे और फिर अखिलेश यादव को यह तोहफा देंगे।

भाजपा से उम्मीदवार गरिमा सिंह को सहानुभूति और मोदी के चेहरे का लाभ मिलने की सम्भावना व्यक्त की जा रही हैं। वह अमेठी के प्रतिष्ठित राजघराने की बहू हैं। पिछले दो साल से उनके पुत्र अनंत विक्रम सिंह क्षेत्र में बने हुए हैं। हालांकि अनंत ने बीती 26 जनवरी जनवरी को बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं की बैठक में माना कि गरिमा सिंह को अमेठी की जनता ने नहीं देखा। वहीं देखा जाए तो अमेठी में रियासत के समर्थकों की अच्छी खासी तादाद है लेकिन इस बार वह अमिता सिंह के हर कीमत पर चुनाव लड़ने के ऐलान से असमन्जस में हैं।

बसपा ने राहुल मौर्य को अपना प्रत्याशी बनाया है। बीते साल भर से इनका क्षेत्र भ्रमण चल रहा है, लेकिन इनकी कोई पुख्ता पहचान अभी तक नहीं बन पाई है। मौर्य का बाहरी होना भी इनका नकारात्मक पक्ष है। बसपा में भी कयास लगाये जा रहे हैं कि अमेठी में शिव प्रताप यादव और गौरीगंज से चंद्रप्रकाश मटियारी को टिकट दिया जा सकता है। घोषित प्रत्याशी जिताऊ उमीदवार नहीं दिखाई पड़ रहे हैं। इस बार बसपा को सिर्फ जिताऊ उमीदवार चाहिए। अंसारी बन्धुओं के टिकट दिए जाने से यह स्पष्ट हो गया है। ऐसी स्थिति में अब अमेठी और गौरीगंज विधानसभा में चुनावी ऊंट किस करवट बैठेगा यह तो अभी साफ नहीं है लेकिन इसमें दो राय नहीं है कि इसमें सपा या कांग्रेस के किसी नेता का अमेठी से चुनाव लड़ने का सियासी मन्सूबा ध्वस्त जरूर होगा।

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