बिहार

जानिए क्यों मनाया जाता है कीचक वध मेला?

keechak vadh mela जानिए क्यों मनाया जाता है कीचक वध मेला?

किशनगंज। भारत-नेपाल सीमा क्षेत्र गलगलिया भातगांव पंचायत के निम्बुगुड़ी से महज तीन किमी पर स्थित नेपाल के झापा जिला महेशपुर गांव में हर साल की तरह की इस बार भी कीचकबध का आयोजन किया जा रहा है जिसके लिए तैयारियां जोर-शोर से की जा रही है। ये मेला तीन दिनों तक चलेगा।

keechak vadh mela जानिए क्यों मनाया जाता है कीचक वध मेला?

माघी पूर्णिमा के दिन यह मेला लगेगा जिसके लिए समिति के लोग, सशस्त्र प्रहरी, नेपाल प्रहरी, स्थानीय सीमावासी, स्थानीय क्लब एवं विद्यार्थियों द्वारा मेला स्थल की साफ-सफाई व मंदिरों की रंगाई-पुताई का काम किया जा रहा है। इस मेले में हर साल लाखों की संख्या में भारत के राज्य बिहार, बंगाल, आसाम, भूटान व सिक्किम तथा नेपाल के झापा, मोरंग और सप्तरी जिलों से श्रद्धालु विभिन्न मार्गों से नेपाल डोन्जो नदी के समीप उक्त स्थान पर भारी भीड़ के साथ माथा टेकने पहुंचते हैं।

जानिए क्या है कीचक वध मेले के पीछे छिपा रहस्य?

जानकारी के मुताबिक महाभारत काल में 12 वर्ष के वनवास के उपरांत एक वर्ष के अज्ञात वास के दौरान राजा विराट की पत्नी महारानी सुदेशना का भाई तथा मतस्य देश के सेनापति कीचक का वध पांडव पुत्र भीम ने मल्य युद्ध में जहां किया था। उसी स्थान पर माघी पूर्णिमा के दिन विशाल मेला लगता है। जिसमें दोनों देशों के नागरिक हिन्दू रिति रिवाज से कीचक वध स्थली पर पहुंच मेले में शामिल होते हैं जिसे कीचक वध मेला कहते हैं।

पुरोहित चतुर्भुज आचार्य ने महाभारत कालीन घटना और मेला कमिटी के अध्यक्ष दिल बहादुर, सचिव मदर करेल, उपाध्यक्ष अम्बिका थापा ने बताया कि मेले के दिन लाखों श्रद्धालु यहां मन्नत मांगने आते हैं और पूर्ण होने पर श्रद्धालु फल फूल, बताशा, कबूतर और बकरा आदि का चढ़ावा चढ़ाते हैं। यहां पशु-पक्षी की बलि पर रोक है। बताया कि वहीं मेला परिसर क्षेत्र में स्थित पातालगंगा का भी एक अलग महत्व है। लोगों ने यह भी बताया कि चबूतरानुमा पातालगंगा के समीप शुद्ध मन व तन से किचक वध नाम, सत्यदेवी पातालगंगा धाम का जयकारा लगाने से पानी उबलने लगता है।

आचार्य के अनुसार 45 वर्ष पूर्व भारतीय कैलेंडर के अनुसार सन 1971 ई. में मंदिर निर्माण हेतु नींव डालने के क्रम में स्थानीय लोगों को यहां जमीन के भीतर भवन का होना प्रतीत हुआ था, पर यहां मंदिर होने के कारण किसी ने खनन नहीं किया फिर सन 1977 ई. में इस बात की भनक नेपाल पुरातत्व विभाग को लगी तब उक्त क्षेत्र को विभाग अपने नियंत्रण में रखकर सर्व प्रथम सन 2002 ई. में एक जगह खनन कराया तब से अब तक 6 चरण में खुदाई हो चुकी है। जिसमें कई टूटे हुए भवन का मलवा भी मिला। बजट के अभाव में खनन कार्य काफी धीमी गति से किया गया।

आचार्य ने नेपाल सरकार से आवश्यक बजट पास करने करने की गुहार लगाई है ताकि दो वर्ष के भीतर खनन कार्य पूरा हो सके। स्थानीय बुद्धिजीवी लोगों का कहना है कि सैकड़ों वर्ष पूर्व कभी 9 रेक्टर स्केल से ज्यादा भूकंप आने के दौरान ये स्थल ध्वस्त होकर जमींदोज होने का अनुमान लगाया जा रहा है।

कमिटी के लोगों ने नेपाल सरकार के प्रति रोष व्यक्त करते हुए कहा कि यह मेला सैकड़ों वर्ष से लगता है तथा मेले में श्रद्धालुओं की सुविधा व विकास हेतु सरकार से कई बार गुहार लगाई गई पर अब तक इसमें कोई पहल नहीं हुई है।

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