नई दिल्ली। इंसानों में बुखार का होना आम बात है। मौसम और बिमारियां तो आती जाती रही हैं। लेकिन अगर ये बिमारी भगवान को लग जाये तो फिर सोचना लाजमी होता है। लेकिन ये सच है रथयात्रा के पूर्व महाप्रभु जगन्नाथ की रथयात्रा के पूर्व पूर्णिमा तिथि पर जगन्नाथ भगवान, सुभद्र जी और बलभद्र को इस तिथि पर स्नान के लिए लाया जाता है। जिसके बाद लोग इनका दर्शन नहीं कर पाते माना जाता है कि इसके बाद उनको बुखार आ जाता है।
बताया जाता है कि स्नान के बाद भगवान के विग्रहों को बुखार आने के चलते उनकी चिकित्सा की जाती है। इसलिए इस दौरान दर्शनार्थियों को उनका दर्शन लाभ नहीं मिल पाता है। इसके बाद सीध भगवान रथयात्रा के रथ पर ही विराजते हैं। जिसके बाद लोग उनके दर्शन करते हैं। इसके पहले स्नान पर जाने के पहले मंदिर परिसर में लोगों की भारी भीड़ होती है। जो कि भगवान के बिमार होने के पहले उनके दर्शन करते हैं। इस बार इस दर्शन के लिए तकरीबन 5 लाख से ज्यादा श्रद्धालु आये थे।
मान्यता है कि हर साल रथयात्रा पर्व के पहले भगवान जगन्नाथ भगवान, सुभद्र जी और बलभद्र के विग्रहों को पर्व के पहले पड़ने वाली पूर्णिमा को स्नान के लिए लेकर जाया जाता है। जहां पर स्नान के बाद कहा जाता है कि भगवान बिमार हो जाते हैं। इसके लिए वे चिकित्सा के लिए जाते हैं। जिसके चलते उनका दर्शन नहीं हो पाया। फिर रथयात्रा के दिन वे जनता और भक्तों से रूबरू होते हैं। ओड़िसा में स्थित भगवान जगन्नाथ का मंदिर 800 साल से भी अधिक पुराना और प्राचीन है। रथयात्रा पर्व के लिए इसे भारत ही नहीं विश्व में अलग पहचान मिली है।
रथयात्रा पर्व के लिए यहां भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के अलग-अलग रथ तैयार किए जाते हैं। इन रथों का रंग और ऊंचाई भी अलग-अलग होती है। रथयात्रा में सबसे आगे बलराम जी का रथ उसके बाद देवी सुभद्रा का रथ और सबसे पीछे खुद भगवान जगन्नाथ का रथ होता है। सभी रथ नीम की लकड़ी से तैयार किए जाते हैं। इन रथों के निर्माण में धातु का इस्तेमाल बिल्कुल नहीं होता है।