नई दिल्ली। भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम राम के नाम से जान चाहता है और उनके पराक्रम के चर्चों से आप लोग भली भांति वाकिफ होंगे। साथ ही उनके पराक्रम की आपने कई सारी कहानियां सुनी होगी लेकिन, क्या आपको पता है कि राजा राम की मृत्यु कैसी हुई थी? नहीं ना…तो चलिए आज हम आपको बताते है कि आखिर राजा राम ने अपना शरीर कब और कैसे त्यागा।
भगवान की मृत्यु को लेकर लोगों के मन में अनेक तरह के सवाल खड़े हो जाते है और वो सोचने पर मजबूर हो जाते है कि क्या भगवान की भी मृत्यु हो सकती है? लेकिन प्रकृति के नियम के मुताबिक जिसने इस धरती पर जन्म लिया है उसकी मृत्यु निश्चित है। भगवान राम ने धरती पर दशरथ पुत्र के तौर पर जन्म लिया था और ऐसा माना जाता है कि वो भगवान विष्णु के अवतार थे।
ऐसा कहा जाता है कि माता सीता के धरती में समाने के बाद उनके दोनों बेटों लव और कुश के अयोध्या आने को लेकर भगवान राम काफी खुश थे। अपने बेटों के अयोध्या में वापस आने के बाद राजा राम ने अपने दोनों बेटों और भाइयों के बीच विश्व का भू-भाग राज करने के लिए बांट दिया था। लेकिन एक दिन अचानक उन्हें इस बात का एहसास हुआ कि उनका मनुष्य रुप में धरती पर रहने का समय पूरा हो चुका है और उन्होंने नारद के द्वारा यमराज से मिलने का संदेश भेजा। संदेश मिलते ही यमराज ने राजा राम से मिलने के लिए बाह्मण का रुप धारण किया और उनसे मिलने राजमहल आए।
यमराज ने राजा राम से कहा कि मेरी और आपके बीच की बात जो भी सुनेगा वो उसी क्षण मर जाएगा इसलिए ध्यान रहे कि जब हम लोग बात कर रहें हो तो उसे कोई भी न सुने। ये बात सुनकर भगवान राम लक्ष्मण के पास गए और कहा कि जब तक मैं बाह्मण से बात कर रहा हूं तब तक को किसी को भी मेरे कक्ष में न आने दे। आज्ञा के उल्लंघन पर उसे मुत्युदंड दिया जाएगा। राम के वहां से जाने के बाद दुर्वासा ऋषि भगवान राम से मिलने आए और लक्ष्मण के रोके जाने पर वो इतना क्रोधित हुए कि उन्होंने लक्ष्मण को मृत्यु का श्राप दे दिया। कक्ष के बाहर चल रही इस वार्तालाप को सुनकर राजा राम जैसे ही बाहर आए वैसे ही लक्ष्मण ने श्री राम से स्वर्ग की आज्ञा ली और उसी समय सरयू नदी में जल समाधी ले ली।
अपने भाई के वियोग में रहे राजा राम ने अगले दिन भरत को राजभार संभालने को कहा लेकिन उन्होंने ऐसा करने से मना किया और उनके साथ चलने को कहा। शत्रुघन ने भी अपने भाई का साथ देते हुए राजभार अपने पुत्रों को सौंप कर सरयू नदी में जल समाधि ले ली और इस तरह दशरथ पुत्रों ने अपने शरीर का त्याग कर दिया।