नई दिल्ली। बलात्कार ये शब्द अपने आप में ही बड़ा भयावह है। देश में इन दिनो रोज किसी ना किसी कोने से बलात्कार की खबरें सुर्खियों में आती रहती है। इन अपराधों की रोकथाम के लिए सरकार लगातार कानूनों में बड़े बदलाव करती जा रही है। कई मामलों में कानूनों के लचर रवैये और साक्ष्यों की कमी के चलते अक्सर अपराधी बच जाते हैं।
इन अपराधों के करने वाले दो तरह के अपराधी होते हैं पहले तो वो अपराधी होते हैं जो कि महिलाओं और लड़कियों की जान और पहचान के होते हैं और दूसरे वो जो हवस की आग में अंधे होकर अकेली लड़की और औरत को अपना शिकार बना देते हैं। इन सभी अपराधों में अपराधी बार-बार अपने आपको बेगुनाह बताता है क्योंकि उसके खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं होता है। लेकिन अब इन्हीं अपराधियो को इनके इस अपराध के लिए सजा के तख्ते पर पहुंचाने के लिए अब इस अपराध की जड़ तक पहुंचने में फॉरेंसिक साइंस का उपयोग किया जा रहा है।
पीड़िता का वजाइनल सैंपल लेना
इस मामले में सैंपल ले लेने के लिए पीड़िता के वजाइनल स्वाब का सैंपल लिया जाता है। इसका डीएनए टेस्ट कर अपराधी के बारे में पता करने में सहायता मिलती है। इस मामले में पीड़िता द्वारा बताए गये आरोपी के रक्त के नमूनों के डीएनए के साथ स्वाब में लिए डीएनए के साथ मिलान किया जाता है।
पीड़िता के कपड़ो से भी मिलते हैं सबूत
फॉरेंसिक साइंस में अब आरोपी को पीड़िता के कपड़ों के जरिए भी पकड़ा जा सकता है। क्योंकि बलात्कार के दौरान पीड़िता ने जो कपड़े पहने हुए थे उन कपड़ों में आरोपी के वीर्य और खून के साथ आने वाले पसीनों से भी उस तक जांच की सूई पहुंच सकती है। अगर पीड़िता उन कपड़ों को बर्षों तक बिना धुले सम्भालकर रखती है तो आरोपी का बचना नामुकिन होता है।
खून के नमूनों से भी होती है आरोपी की सफल पहचान
इस मामले में आरोपी के खिलाफ सबूत इकठ्ठा करने में रक्त के नमूनों को काफी अहम माना जाता है। इस मामले में आरोपी और पीड़िता के नमूने लिए जाते हैं। क्योंकि कई बार वजाइनल स्वाब से कुछ नहीं मिलने की स्थिति में इन उस पीड़िता के साथ हुए इस कुकृत्य के दौरान कभी आरोपी के शरीर से छाना-छपटी के दौरान आई खरोंचों से खून निकल जाता है जो पीड़िता के शरीर पर या पकड़े पर पड़ जाता है। इसके साथ ही कभी पीड़िता के शरीर से निकला खून की बूंदें आरोपी के शरीर या कपड़ों पर पड़ जाती है। इसलिए इस मामले में खून का सैंपल लिया जाना आवश्यक होता है।
घटना स्थल पर मौजूद चीजें बनती है फॉरेंसिक साइंस में कारगर सबूत
कई बार आरोपी कोई बड़ा सबूत नहीं छोड़ता लेकिन अपराध के अंधेरा अब उसका पीछा नहीं छोड़ने वाला है। क्योंकि इस मामले में अब घटना स्थल पर मौजूद कई साक्ष्यों को भी खंगाला जाता है। मसन घटना के दौरान वहां पर थूक के नमूने लार के नमूने इकठ्ठा किया जाता है। इसके बाद इन नमूनों के साथ पीड़िता और आरोपी से लिए गये नमूनों से मिलन किया जाता है।
पीड़िता और आरोपी के शरीर की जांच से मिलते हैं अहम सबूत
फॉरेंसिक साइंस के जरिए अब पीड़िता के शरीर की पूरी जांच की जाती है। इसके शरीर से मिलने वाले घास-धूल और कांटों के इकठ्ठा किया जाता है। इसके बाद घटना स्थल से भी इन चीजों को एकत्र कर इस मामले की तह तक ये जांच पहुंचती है। इसके साथ ही इस मामले में आरोपी के कपड़ों और शरीर से भी इन चीजों के लेने की कोशिश होती है।
फॉरेंसिक जांच में यूवी लैंप और ड्रग्स के साथ डीएनए टेस्ट है अहम
इन मामलों में वीर्य और स्राव के दागों की जांच के लिए यूवी लैंपों का इस्तेमाल किया जाता है। इसके साथ ही इस मामले में पीड़िता के सिर और वजाइना के बालों पर कंघी फेरकर दूसरे बालों को इकठ्ठा करने की कोशिश होती है। जिससे दूसरे मिले बालों से आरोपी की पहचान की जा सके। इसके साथ ही अगर पीड़िता बलात्कार के समय बेहोशी में होने की बात कहे तो उसके रक्त के साथ मूत्र के नमूने लिए जाते हैं। जिससे इस तथ्य को साबित करने में आसानी होती है। इसके साथ ही इस मामले में मिले सबूतों का डीएनए टेस्ट भी किया जाना चाहिए। सफल टेस्ट के लिए शुरूआत के 48 घंटे से 96 घंटे अहम होते हैं।
अब रेप के मामलों में फॉरेंसिक साइंस का प्रयोग कर पुलिस आरोपी तक पहुंचने में काफी सफल हो रही है। इसके साथ ही इन मामलों में आरोपियों की सही पहचान भी हो रही है। इसके साथ ही अब ठोस सब सबूतों के अभाव में कोई आरोपी इन मामलों से बच नहीं सकता है। क्योंकि इन सबूतों के मिलने के बाद आरोपी के खिलाफ पुलिस और पीड़ित को ठोस प्रमाणित सबूत मिल जाते हैं। जो कि भारतीय दंड प्रक्रिया के साक्ष्य अधिनियम के तहत आते हैं। इसलिए इन सबूतों के बाद कोर्ट इन मामलों में आरोपी के साथ कोई नरमी नहीं बरतती है।