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किरण के संसदीय क्षेत्र में फिर जीती भाजपा, जमाया मेयर पद पर कब्जा

kiran किरण के संसदीय क्षेत्र में फिर जीती भाजपा, जमाया मेयर पद पर कब्जा

चंडीगढ़।  पंजाब और हरियाणा की साझा राजधानी में एक बार फिर मेयर पद पर बीजेपी का कमल खिला है। पार्टी के देवेश मौदगिल ने कांग्रेस के दविंदर बबला को 17 मतों से हरा दिया है। जहां मोदगिल को 22 वोट मिले तो वहीं बबला को सिर्फ पांच वोटों से ही संतुष्ट होना पड़ा। दरअसल चंडीगढ़ नगर निगम में बीजेपी को खासी मशक्कत का सामना करना पड़ा है क्योंकि पार्टी की निवर्तमान मेयर आशा जसवाल ने मोदगिल के खिलाफ नामंकन पत्र दाखिल किया था। इसको लेकर बुधवार को  पार्टी प्रभारी प्रभात झा ने पूर्व सांसद सत्यपाल जैन गुट से देवेश मोदगिल को निगम चुनाव के लिए पार्टी का मेयर पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया था, जबकि टंडन गुट इस निर्णय के खिलाफ था। यही कारण है कि वर्तमान मेयर आशा जसवाल ने मेयर पद के लिए और रविकांत शर्मा ने सीनियर डिप्टी मेयर के लिए आजाद नामांकन भर दिया था।

इसके बाद से ही पार्टी में दोनों गुट आमने-सामने आ गए थे और एक-दूसरे को ही नाम वापस लेने की नसीहत दे रहे थे। इसके अलावा पार्टी द्वारा सीनियर डिप्टी मेयर के लिए गुरप्रीत सिंह ढिल्लों और डिप्टी मेयर के लिए विनोद अग्रवाल को उम्मीदवार बनाने के बावजूद टंडन गुट से रविकांत शर्मा ने सीनियर डिप्टी मेयर के लिए आजाद नामांकन भर दिया था, लेकिन हाईकमान के दवाब के चलते ही सोमवार को मेयर आशा जसवाल ने अपना नामांकन वापस ले लिया। चंडीगढ़ नगर निगम में इस समय बीजेपी बहुमत के साथ काबिज है और यहां से अभिनेत्री किरण खेर बीजेपी की सांसद हैं। kiran किरण के संसदीय क्षेत्र में फिर जीती भाजपा, जमाया मेयर पद पर कब्जा

निगम हाउस के 26 चयनित पार्षदों में से 20 भारतीय जनता पार्टी के हैं इसके अलावा एक पार्षद बीजेपी के सहयोगी दल अकाली दल का है और एक निर्दलीय पार्षद है। वहीं कांग्रेस के पास निगम में मात्र चार पार्षद ही मौजूद है। 26 पार्षदों के अलावा स्थानीय सांसद को भी मेयर चुनाव में वोट का अधिकार है। बता दें कि चंडीगढ़ के नगर निगम के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जब 9 मनोनीत पार्षद मेयर में चुनाव में अपने मताधिकार का इस्तेमाल नहीं कर सके क्योंकि पिछले साल पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने मनोनीत पार्षदों के वोट करने पर पाबंदी लगा दी थी।

हाईकोर्ट की इस पाबंदी के बावजूद ये लोग अपने मत का इस्तेमाल नहीं कर पाए। दरअसल इस मामले को लेकर बीजेपी के पूर्व पार्षद सतिंदर सिंह ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी।  यही कारण है कि मनोनीत पार्षदों के समर्थन में प्रशासन ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली थी, लेकिन वहां से भी अभी तक मनोनीत पार्षदों को कोई राहत नहीं मिली। इससे पहले मनोनीत पार्षद पिछले मेयर चुनावों में गेम चेंजर की भूमिका निभाते रहे हैं। कहा जाता रहा है कि जिस पार्टी को मनोनीत पार्षदों का समर्थन हासिल है, उस पार्टी के उम्मीदवारों की जीत पक्की है।

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