नई दिल्ली। शास्त्रों के अनुसार मार्ग शीर्ष महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालभैरव अष्टमी की पूजा अर्चना की जाती है। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन भगवान शिव ने काल भैरव के रुप में अवतार लिया था इसी वजह से इस दिन को कालभैरव जयंती के रुप में मनाया जाता है। शिव के इस अवतार को तंत्र-मंत्र का देवता कहा जाता है। इसके साथ ही जिस व्यक्ति को सिद्धी प्राप्त करनी होती है उसे इनकी पूजा करना अनिवार्य होता है क्योंकि इनके आर्शीर्वाद के बिना तंत्र की साधना अधूरी रह जाती है। लेकिन इनकी कृपा प्राप्त करके व्यक्ति को सभी कष्टों से मुक्ति मिल जाती है।
कालभैरव से भयभीत होता है काल:-
काल भैरव को भगवान शिव का रुप कहा जाता है। वैसे तो भगवान शिव को शास्त्रों में भोलेनाथ की उपाधि दी गई है। उन्हें प्रसन्न करने काफी आसान होता है लेकिन भगवान के इस रुप को प्रसन्न करना बेहद मुश्किल है। कहा जाता है कि भगवान शिव के इस रुप से काल भी भयभीत होता है। भगवान भैरव शिव और दुर्गा के भक्त है। बताया जाता है कि शक्तिपीठों के पास बने भैरव मंदिरों को खुद भगवान शंकर ने स्थापित किया है। ऐसी मान्यता है कि काल भैरव भक्तों के भरण-पोषण के साथ-साथ उनकी रक्षा भी करते हैं। इनका जन्म दिन और रात की मिलन घड़ी में हुआ इसी वजह इनकी पूजा शाम और रात के बीच की जाती है।
उपासना करने से दूर होंगे सभी कष्ट:-
काल भैरव का रुप रात्रि के समान होता है और वाहन कुत्ता होता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन कुत्ते को मिठाई खिलाकर दूध पिलाया जाता है। मूर्ति पर तिल चढ़ाने से सभी प्रकार के कष्टों का नाश होता है। शास्त्रों के अनुसार भगवान काल भैरव के 8 रुप माने गए है और अष्टमी के दिन इनकी पूजा करना लाभकारी साबित होता है।