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नो वन किल्ड जेसिका, नो वन डिड 2 जी स्कैम !

2g scam नो वन किल्ड जेसिका, नो वन डिड 2 जी स्कैम !

नई दिल्ली। सर्दियां शुरू हो रही थी देश में लेकिन सत्ता के गलियारों में गरमाहट थी, क्योकि सीएजी यानी कैग देश की आडिट करने के सबसे बड़ी संवैधानिक संस्था महालेखाकार और नियंत्रक ने सरकार के पूर्व कार्यकाल में दूर संचार मंत्रालय में 2 जी स्पेक्ट्रम की नीलामी को लेकर बड़ा खुलासा किया था। संसद से लेकर सड़क तक विपक्ष का नंगा नाच जारी था। संसद हंगामें से ठप्प थी तो न्यूज चैनल और अखबार खुलासे की खबरों से पटे पड़े थे। देश ही नहीं विदेशों तक इस घोटाले की खबरों से हंगामा मचा था। देश की साख दांव पर भी तो किसी पार्टी का राजनैतिक भविष्य क्योंकि इस घोटाले में सरकार के मंत्री से लेकर अधिकारी और कई बड़े उद्योगिक घरानों पर आरोप लगे थे।

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आखिर दोषी कौन
लेकिन सात साल बाद सारे आरोप गंगा स्नान कर पाप धुलने जैसे गुरूवार को कोर्ट के आदेश के बाद दिखने लगे। सारे 17 आरोपी बरी हो गए रिपोर्ट जांच चार्जशीट चार्ज सुनवाई गवाह सबूत सब बेकार हो गए, क्योंकि कोई ऐसा कानूनी तौर पर ना सबूत था ना गवाह ना जांच का रिजल्ट जो इसे घोटाला साबित करे, जो आरोपियों को आरोपी साबित करे। आखिर न्यायपालिका ने सबूतों के अभाव का नाम लिया सिस्टम को लताड़ लगाई और इस मामले के सभी आरोपियों को सबूतों के अभाव में छोड़ दिया गया। न्यायपालिका ने वही किया जो संविधान के दायरे में करना था, अगर फेलियर देखना है तो सिस्टम का आखिर इतने बड़े घोटाले में कोई सबूत क्यूं नहीं मिला क्या कैग की रिपोर्ट गलत थी तो अगर कैग की रिपोर्ट गलत है तो फिर सरकार के कामों की आडिट करेगा कौन ये तय कौन करेगा।

खेल को समझाने में दिक्कत क्या है
आईए जरा देखते हैं आखिर मामला क्या था। साल 2008 में 2 जी के स्पैक्ट्रम का आवंटन किया गया। वो भी इस तरह से जैसे आपको किसी को कप्तान बनाना है तो तय कर लीजिए और उसे बता दीजिए कल हम घोषणा करेंगे कि कप्तान बनने के लिए 2 बजे स्टेडियम आना है तो तुम स्टेडियम में पहले से रहना हम तुमको ही चुन लेंगे। यानी पहले आओ और पहले पाओ, अब एक बात ये समझ में हम सभी को आती है कि तत्कालीन सरकार और मंत्रालय की इस कार्यप्रणाली को लेकर कि ये व्यवस्था कहीं ना कहीं किसी चहेतों या लाभ के लिए ही रखी गई थी। वरना अगर सरकार सुचिता की बात करती है तो नीलामी की प्रक्रिया के इतर ये प्रक्रिया अपनाने की आवश्यकता क्यूं थी। अब दूसरी अहम बात अगर किसी वस्तु को किसी व्यक्ति को मूल्य लेकर दिया गया तो 2001 में तय की गई राशि पर ही आवंटन क्यूं हुआ क्या मंहगाई बढ़ी नहीं थी तो क्या मूल्यों में कोई अंतर नहीं था। यानी आवंटन के साथ ब्रिक्री में भी सरकार और मंत्रालय ने सुचिता नहीं बरती थी। अब इसी बात को लेकर जांच हुई सीएजी ने साफ किया कि सरकार की प्रणाली संदेह के दायरे में है इससे सरकारी खजाने में 1 लाख 76 हजार करोड़ की राशि का नुकसान हुआ है। सरकार की आवंटन प्रणाली पर भी संदेह व्यक्त हुआ। साल 2012 में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने सभी आवंटन जीरो लॉस थ्योरी को बताने वाली सरकार के रद्द कर दिए। इससे साफ ही साफ कर दिया कि दाल में कहीं तो कुछ काला है।

सीबीआई की क्षमता पर सवालिया निशान
लेकिन मामले की जांच करने वाली देश की सबसे बड़ी जांच एजेन्सी को कुछ नहीं मिला ना कोई सबूत ना गवाह ना कोई ऐसे दस्तावेज जिससे घोटाला साबित हो । यहां तक कि आरोपियों के खिलाफ भी कुछ नहीं मिल सकता। अंत में ये बात हुई कि कुछ शिकायतों के आधार पर ही कैग ने रिपोर्ट तैयार कर दी थी। आखिर कैग से ऐसी मानवीय भूल हुई कैसे। आज का विपक्ष तत्कालीन कैग विनोद रॉय और तत्कालीन विपक्ष वर्तमान सत्ता पक्ष पर मिलकर साजिश का आरोप लगा रहा है। लेकिन आखिर अगर विनोद रॉय ने ये साजिश रची तो क्यूं और कैसे उस वक्त जो विपक्ष आज चिल्ला रहा है उसको कैसे पता नहीं चला उस वक्त जब घोटाला सामने आया तो सरकार की बोलती बंद थी। बैकफुट में खेल रही थी, हर व्यक्ति इस मामले का ठीकरा दूसरे के सर पर फोड़ रहा था। लेकिन आज ये सब कैसे हो गया, इतने बड़े घोटाला का रिजल्ट शून्य यानी घोटाला ही नहीं था तो था क्या यह बस वहम या फिर राजनीति साजिश या आने वाली राजनीति का नया खेल आप इशारा और मतलब दोनों ही समझ गए होंगे। यहां तो बस यही बात है कि जेसिका को किसने मारा पता नहीं, कार किसने चलाई पता नहीं हिरन कैसे मरा पता नहीं आरूषि की हत्या कैसे हुई पता नहीं तो 2 जी घोटाला था या केवल वहम ये कैसे पता चलेगा।

Piyush Shukla नो वन किल्ड जेसिका, नो वन डिड 2 जी स्कैम !अजस्र पीयूष

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