रांची। झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास जहां राज्य की उच्च विकास दर 8.6 प्रतिशत को सामने रख कर जापानी निवेशकों को अपने यहां उद्योग लगाने का न्योता दे रहे हैं वहीं राज्य के संसदीय कार्य और खाद्य-आपूर्ति मंत्री सरयू राय ने यह कह कर एक नया विवाद पैदा कर दिया है कि विकास से जुड़े आंकड़े धोखा देने वाले हैं। राय ने एक कार्यक्रम में कहा है कि इस समय 8.6 प्रतिशत विकास दर के साथ झारखंड को गुजरात के बाद दूसरे स्थान पर बताया जा रहा है, जबकि राज्य में सबसे अधिक 14-15 प्रतिशत की विकास दर मुख्यमंत्री मधु कोड़ा के समय था। राय ने बीते दिन भोजन, भूख व कुपोषण पर आयोजित कार्यशाला में कहा है कि विकास का काम जमीन पर दिखना चाहिए। उन्होंने सामाजिक अंकेक्षण के लिये स्वतंत्र निदेशालय की जरूरत बताते हुए कहा कि विकास के मामले में आर्थिक विशेषज्ञों का विश्लेषण जरूरी है।
यह बात अब खुल कर सामने आ गई है कि राय अपनी ही सरकार की कार्यशैली से नाराज चल रहे हैं। वह पहले भी कई मुद्दों पर सरकार के फैसलों पर विरोध दर्ज करा चुके हैं। कैबिनेट की बैठक में ही उन्होंने खुद शराब बेचने के राज्य सरकार के फैसले का विरोध किया था। धान की सरकारी खरीद में कमी पर भी उन्होंने सख्त नाराजगी जाहिर की थी। सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) की जगह प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) लागू किए जाने के फैसले से भी वह खुश नहीं हैं। राजनीतिक हलकों में यह चर्चा का विषय बना हुआ है कि मुख्यमंत्री रघुवर दास से उनकी बातचीत तक बंद है। दरअसल पायलट प्राेजेक्ट के तौर पर रांची के नगड़ी से डीबीटी की शुरुआत के मौके पर आयोजित कार्यक्रम में दास और राय दोनों मौजूद थे लेकिन उनके बीच कोई संवाद होते किसी ने नहीं देखा। इसके बाद यह खबर जंगल की आग की तरह फैल गई कि मुख्यमंत्री और सरयू राय में बातचीत तक बंद है।
राय अपनी ही सरकार से आखिर क्यों इतने नाराज हैं। यह सवाल राजनीतिक गलियारे से होते हुए अब आम जनों के बीच भी उठने लगा है। सरयू राय एक सुलझे हुए और विनम्र राजनेता के रूप में जाने जाते हैं। उनकी काबिलियत पर भी संदेह की कोई गुंजाइश नहीं है। वह इस सवाल का सटीक जवाब दे सकते हैं लेकिन शायद देना नहीं चाहते। हालांकि मौके- बेमौके पर सोशल मीडिया और अन्य माध्यमों के जरिए वह संकेतों में बहुत कुछ कह देते हैं, लेकिन आम आदमी को उनकी वह भाषा समझ में नहीं आती है।
समझा जाता है कि राय को अपने विभाग के मामलों में किसी का भी अनावश्यक हस्तक्षेप स्वीकार नहीं है।
चाहे वह प्रदेश के मुख्यमंत्री ही क्यों न हों। यही वजह है कि उन्होंने मोर्चा खोल दिया है। डीबीटी मुद्दे पर नीति का हवाला देते हुए उन्होंने मुख्यमंत्री को पत्र लिख दिया है। इतने पर भी वह कहां मानने वाले थे। उनके विभागीय मामले में दखल हुआ तो उन्होंने तेनुघाट विद्युत निगम लिमिटेड (टीवीएनएल) के प्रबंध निदेशक की नियुक्ति को लेकर सवाल उठा दिया है। इसके साथ ही सत्ता के गलियारों में सरकार के अंदर उठापटक की चर्चा शुरू हो गई है। मुख्यमंत्री अभी जापान के दौरे पर हैं। उनके लौटने पर प्रदेश की सत्ता की राजनीति में कुछ उथल-पुथल होने की आशंका जताई जा रही है।