जयपुर। होली आई रे रंगों की बहार लाई रे… इस लाइनों के साथ पूरा देश होली के रंग में डूब गया है। घरों में गुजिया और कई तरह के पकवान बनाए जा रहे है। पकवानों की उस भीनी खुशबू से मौसम भी खुशमिजाज बना हुआ है। होली के रंगों के लिए लोग एक साल तक इंतजार करते हैं और जब ये आती है तो दुश्मनों को भी दोस्त बना जाती है। भारत के तमाम शहरों में होली कई तरह से सेलिब्रेट की जाती है। होली वैसे तो एक दिन का त्योहार माना जाता है लेकिन मथुरा-वृंदावन में होली एक सप्ताह तक चलती है। भारत का एक राज्य ऐसा हैं जहां पर 16 दिनों तक होली मनाई जाती है। जी हां, एक या दो दिन नहीं बलकि 16 दिनों तक राजस्थान में होली मनाई जाती है।+
दरअसल राजस्थान में होली के दूसरे दिन गणगौर पूजा शुरू हो जाती है जो 16 दिनों तक चलती है और इस पूजा के समाप्ति के दिन फिर से गुलाल की होली खेली जाती है। ये विशेषकर मारवाड़ियों की पूजा मानी जाती है इसे बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि मारवाड़ियों के लिए होली और दिवाली सबसे प्रमुख त्योहार होते हैं। इन दोनों त्योहारों पर मारावड़ियों में बहुत धूम मचती है। होली के बाद सारे त्योहार, पूजा, पर्व और व्रत खत्म हो जाते हैं। फागुन मास के बाद से अगस्त यानी रक्षा बंधन श्रावण के महीने तक कोई पूजा-त्योहार नहीं होता है इसलिए होली को और भी खास माना जाता है।
नई दुल्हन के लिए खास
होली तो वैसे सबके लिए ही खास मानी जाती है लेकिन ये त्योहार उन लड़कियों के लिए बेहद खास हो जाता है जो नई नवेली दुल्हन बनी होती है। इस त्योहार में होली के दिन होलिका दहन के वक्त दुल्हम को होली माता के चारों ओर फेरे लगवाए जाते हैं और दूसरे दिन से गणगौर की पूजा शुरू होती है। फेरे के बाद ही नवविवाहिता अपने मायके जाती है और वहां पर अपनी पहली होली मनाते हैं। वो16 दिन तक गणगौर माता की पूजा वो अपने ही मईके से करती है।
कैसे करते हैं पूजा
ये एक ऐसा त्यौहार है जो चैत्र महीने की शुक्ल पक्ष की तीज को आता है। इस दिन कुवांरी लड़कियां एवं विवाहित महिलाएं भगवान शिव और माता गोरी की पूजा करते हुए दूब से पानी के छांटे देते हुए गोर गोर गोमती माता के गीत गाती हैं। इस पर्व में कुंवारी लड़कियां मनपसंद वर पाने की कामना करती हैं और विवाहित महिलाएं पति की लंबी आयु की कामना करती हैं।
होलिका दहन के दूसरे दिन चैत्र कृष्ण प्रतिपदा से चैत्र शुक्ल तृतीया तक 16 दिनों तक चलने वाला त्योहार है। यह माना जाता है कि माता गवरजा होली के दूसरे दिन अपने पीहर आती हैं तथा आठ दिनों के बाद ईसर (भगवान शिव) उन्हें वापस लेने के लिए आते हैं ,चैत्र शुक्ल तृतीया को उनकी विदाई होती है।