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क्या आपने इन दशहरों के बारे में नहीं सुना ?

Ravan क्या आपने इन दशहरों के बारे में नहीं सुना ?

त्योहार एवं मेले भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग है। हमारे यहां हर दिन कोई-ना-कोई पर्व या त्योहार होता है, उनमें न केवल भौतिक आकर्षण के पर्व है बल्कि प्रेरणा से जुड़े पर्व भी है। एक ऐसा ही अनूठा पर्व है दशहरा।

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भारत के लगभग सभी भागों में दशहरे का पर्व एक महान उत्सव के रूप में मनाया जाता है, जिसे विजयादशमी भी कहा जाता है। आइए आज हम आपको बताते हैं देश के कुछ अनूठे दशहरे के बारे में रोचक तथ्य

कुल्लू का दशहरा:-

कुल्लू का दशहरा परंपरागत तरीके से मनाया जाता है। हिमाचल प्रदेश के कुल्लू का दशहरा बहुत ही नये अंदाज में मनाया जाता है। यहां पर दशहरे को दशमी कहते हैं। कुल्लू रघुनाथजी की पूजा के साथ दशहरे का त्योहार शुरू होता है। कुल्लू में दशहरा आश्विन माह में सौ से ज्यादा देवी-देवताओं को रंगबिरंगी सजी हुई मूर्ति के साथ यज्ञ अनुष्ठानों का आयोजन किया जाता है। रघुनाथ जी की रथयात्रा और छोटे-छोटे जुलूसों की सुंदरता अलग ही होती है।

मैसूर का दशहरा:-

दशहरा केवल उत्तर भारत के लोगों का बीच ही प्रसिदृ नहीं है बल्कि कर्नाटक के मैसूर में भी काफी जोरों शोरों से मनाया जाता है। यहां पर ये पर्व 10 दिनों तक मनाया जाता है, और इसके दौरान बहुत सी डॉल्स बनाने का प्रचलन है। डॉल्स को सात, नौ और ग्यारह के ऑड नंबर में लगाया जाता है और सफेद कपड़े से ढककर रखा जाता है। नवरात्रि के इन नौ दिनों गुडि़यों की पूजा की जाती है। लोग नए वस्त्र पहनकर आपस में मिलते हैं ,चारों ओर चकाचौंध और खुशहाली का माहौल होता है।

बस्तर का दशहरा:-

बस्तर में दशहरे का राम-रावण कथा से कोई संबंध नही है। यहां ये त्योहार 75 दिनों तक मनाया जाता है। बस्तर में मां दंतेश्वरी केअनेक देवी-देवताओं की तेरह दिनों तक अराधना की जाती है। यहां के लोगों का मां दंतेश्वरी पर अटूट विश्ववास है और यहां दशहरा अतयंत ही पारंपरिक रूप से मनाया जाता है। बस्तर में इस पर्व की तैयारियां बहुत पहले से ही शुरू हो जाती हैं। यहां पर दशहरे के अवसर पर बिना किसी भेदभाव के सब मिलकर देवी-देवताओं की पूजा व अर्चना करते है।

इलाहाबाद का दशहरा:-

इलाहाबाद में दशहरा की आरम्भ रावण की पूजा और विशाल शोभा यात्रा के साथ होती है। बैंड-बाजे और उल्लास के साथ रावण की शोभा यात्रा जब पूरे  इलाहाबाद में निकाली जाती है। शोभा यात्रा निकालने का ये रिवाज यहां काफी पुराना है और इसकी तैयारी बहुत ही कलात्मक रूप से की जाती है। रावण की अत्यन्त विशालकाय मूर्ति के साथ पूरे  इलाहाबाद में झाकी लगाई जाती है व  अनेक सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते है।

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